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जनतंत्रवाद--जनतत्र से प्रयोजन ऐसी प्रणाली से है जिसका संचालन जनता के हाथ मे हो। जनतंत्र प्रत्यक्ष होता है और अप्रत्यक्ष भी। प्रत्यक्ष जनतत्र मे सब जनता भाग लेती है और प्रत्यक्षतः शासन-प्रबध में हाथ बटाती है। अप्रत्यक्ष जनतंत्र में जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियो की परिषद् द्वारा शासन-सचालन में भाग लेती है। भारत में जनतत्र अत्यन्त प्राचीन सस्था रहा है। वैदिक युग मे यहॉ जनतत्र शासन-प्रणाली स्थापित थी। प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल, बैरिस्टर, ने अन्वेषण के बाद यह सिद्ध किया है कि प्राचीन वैदिक युग में भारत मे जनतत्र-प्रणाली प्रचलित थी। उन्होने इस विषय पर "हिन्दू राजतत्र" नामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रथ भी लिखा है।
आइसलैण्ड मे प्रायः १००० वर्ष से जनतत्र शासन-पद्धति स्थापित है। इंगलैण्ड में १४वी शताब्दी में जनतत्रात्मक सस्थाओ का विकास हुआ। जब १८वी शताब्दी में फ्रान्स तथा अमरीका में राज्य-क्रान्तियॉ हुई तब, आधुनिक अर्थ मे, जनतत्र-शासन की वहॉ स्थापना की गई। जनतंत्र इस अँगरेज़ी सिद्धान्त पर आश्रित है कि सत्ता को तीन विभागों मे विभाजित किया जाय:(१)व्यवस्था, (२)शासन-प्रबन्ध और (३)न्याय। आज संसार मे दो प्रकार के जनतंत्र मौजूद हैं। एक वह जिनमे सरकार व्यवस्थापिका-सभा(क़ानून बनानेवाली धारा सभा) के प्रति उत्तरदायी होती है। इसे हम ब्रिटेन मे पूर्णरूपेण विकसित पाते हैं। दूसरी वह है जिसमे सरकार व्यवस्थापिका-सभा के प्रति उत्तरदायी नही होता। वह केवल जनता या मतदाताओ के प्रति उत्तरदायी होती है। सयुक्त-राज्य अमरीका मे यही प्रणाली प्रचलित है। सफल जनतंत्र के लिये दो या अधिक राजनीतिक
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