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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१३३

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जापान
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अपने अस्तित्त्व को एकसत्तावादी सरकार में मिला दिया। एशिया में साम्राज्य-विस्तार के सम्बन्ध में सब दल एकमत हैं। जापान का चीन से युद्ध छिडे, जुलाई १९४२ मे पॉच वर्ष हो चुके। इस युद्ध में जापान अबतक, चीनी युद्ध-प्रवक्ताओं के अनुसार, २५ लाख जाने होम चुका है।

जापानी सेना मे ५०,००,००० सीखे हुए सैनिक हैं। संसार की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में इसकी गणना की जाती है। चीन-संघर्ष मे २०,००,००० सेना संलग्न है। जापानी नौ-सेना का संसार में तीसरा स्थान है। उसके पास युद्धायुध मे ९ युद्ध-पोत, १४ भारी युद्ध-पोत, २४ हलके क्रूज़र, ११२ ध्वंसक, ६० पनडुब्बियॉ, ६ बम-वर्षको को ले जानेवाले जहाज़ सन् १९३९ में बताये गये थे। । किन्तु तब से तो जापान अपने युद्ध-प्रयत्नो को चुपचाप आशातीत रूप मे बढा चुका प्रतीत होता है। अपने युद्ध-प्रयत्नो को गुप्त रूप से बढ़ाने के लिये ही वह लन्दन की नौ सेना-सन्धि में सम्मिलित नही हुआ। जापान अब तक बरतानवी साम्राज्य के मलय, हांग्कांग्, ब्रह्मा, अन्दमनद्वीप-समूह प्रदेश तथा सिगापुर के विख्यात समुद्री अड्डे को जीत चुका है। अमरीकी प्रदेशों में फिलिपाइन्स द्वीप, हवाई तथा हालैन्ड के डच पूर्वी द्वीपसमूह और जावा, सुमात्रा को भी वह हथिया चुका है। प्रशान्त महासागर मे, इस प्रकार, जापान बहुत भूमि प्राप्त कर चुका है। आस्ट्रेलिया पर उसने मार्च '४२ मे हमले किये थे। सितम्बर १९४२ के दूसरे सप्ताह से प्रशान्त महासागर में, सोलोमन्स आदि द्वीपसमूह पर, अमरीका और ब्रिटेन ने जापान के मुकाबले मोर्चा अडा रखा है, वहाँ ज़ोरो की लड़ाई जारी है और मित्र-राष्ट्र जीत रहे हैं। फ्रान्सीसी हिन्द-चीन को भी जापान हडप चुका और स्याम (थाईलैण्ड) को उसने अपने प्रभाव में ले लिया है। भारत को भी उसकी साम्राज्यवादी लिप्सा का प्रतिक्षण ख़तरा है।

१८९४-९५ ई० मे जापान चीन से लड़ चुका है। १९०५ मे रूस को हरा चुका है। पिछले महायुद्ध मे मित्रराष्ट्रो की ओर से लड़ चुका है। सन् १९१८ मे सोवियट रूस में हस्तक्षेप कर चुका है। १९३१ में मंचूरिया को ले लेने के बाद, १९३७ के जुलाई मास से चीन के साथ उसने फिर युद्ध छेड़ रखा है। यही कारण हैं जिनसे उसके