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दांज़िग
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हाई कमिश्नर, नियुक्त हुआ है। फ्रान्स के युद्ध में जिरौ जर्मनों के हाथ क़ैद होगया था। दिसम्बर '४२ में वह उनकी क़ैद से भागकर आया है। पिछले महायुद्ध मे भी वह इसी प्रकार क़ैद हुआ और वहाँ से भाग निकलाथा। जिरौ सोलह आना संयुक्तराष्ट्रो का साथी बनगया प्रतीत होता है और, जब यहॉ पंक्तियाॅ छप रही हैं, उनके तथा जनरल चार्ल्स द गौल के साथ फ्रान्स की स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने का प्रयास कर रहा है।



दांजिग--विस्चुला नदी के मुहाने पर, वाल्टिक सागर के किनारे, यह एक बन्दरगाह है तथा इसी नाम का एक नगर भी। ज़िले की जनसंख्या ४,००,००० और म्युनिसिपैलिटी की २,६०,००० है। वर्तमान युद्ध से पूर्व यहाँ ६७ प्रतिशत जर्मन आबाद थे। इस नगर की बुनियाद, सन् १३१० मे, स्लैव जाति के लोगो ने डाली थी। स्लैव लोगों को ट्यटोनिक लोगों ने हरा दिया तब इसमें जर्मन बसाये गये। तब से ही यह जर्मन नगर रहा है। परन्तु पोलैण्ड के लिए यही एक समुद्री मार्ग हैं। सन् १४५० से १७९३ तक दाज़िग, पोलिश सरकार के अधीन, स्वतत्र नगर रहा। प्रशा (जर्मन प्रदेश) ने, सन् १७९३ में, इसे अपने राज्य में मिला लिया। सन् १८०७ से १८१५ तक फिर पोलैण्ड के पास रहा। इसके बाद वह फिर प्रशा में मिला दिया गया। इस प्रकार यहाँ के अधिवासियों में जर्मन राष्ट्रीयता का जागरण हो गया। जब १९१८ मे वार्सेई की सधि के समय इसे प्रशा से अलगकर, पोलेण्ड के संरक्षण मे, स्वतत्र नगर बनाया गया तब देश-प्रेमी दांज़िगी जर्मन ने उसका विरोध किया। बन्दरगाह का प्रबंध एक बोर्ड के अधीन कर दिया गया जिसमें दाज़िग तथा पोलैण्ड के प्रतिनिधि नियुक्त किये गये। परन्तु इन प्रदेश की रेलवे तथा तट-पर--आयात-निर्यात कर--पर पोलैण्ड का नियन्त्र रहा। पोलैण्ड के इतिहास में दाज़िग एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है। प्रशा के शासक फ्रेटनिक (द्वितीय) ने एक बार कहा था--"जो बिल्कुल के मुहाने पर अधिकार रखना है वह पोलेण्ड के बादशाह से भी अधिक शक्तिशाली है।" पोलैण्ड तथा दाज़िग को मिलाने के लिए एक लम्बी पट्टी (कोरीटर) बनाई थी। दक्षिण के बाहर बाल्टिर तट पर छोटी सी ज़मीन की पट्टी पौलेण्ड को दे दी गई जिस पर उसने दाइनिया नामक अपना बन्दरगाह बना लिया।