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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१७३

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निरस्त्रीकरण-सम्मेलन
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प्रति विद्रोह कर रही है और ब्रिटेन-प्रवासी राजा की ही भक्त है। नात्सिय का अत्याचार चालू है। १९४१ मे अनेक नार्वेजियनो को वह फॉसी चुके हैं। देशघाती क्किसलिंग् का विश्वासघात ससार मे, अन्य देशों को हडप के लिये, अब जर्मन दुर्नीति का पर्याय बन गया है।

निरस्त्रीकरण--राज्यो की सेना तथा अस्त्र-शस्त्रों में इतनी कम करना जितनी कि उस राज्य की आन्तरिक सुरक्षा के लिए आवश्यक हो और जिससे एक राष्ट्र दूसरे पर हमला न कर सके।

निरस्त्रीकरण-सम्मेलन–-यह अन्तर्राष्ट्रीय-सम्मेलन राष्ट्रसंघ के कार्यालय, जिनेवा, मे २ फरवरी १९३२ को, शस्त्रीकरण में कमी करने के उद्देश्य मे हुआ था। लोकार्नो-सधि के बाद, १२ दिसम्बर १९२५ को, निरस्त्रीकरण सम्मेलन के लिए एक कमीशन की नियुक्ति का निर्णय किया गया। १५ फरवरी १९२६ को कमीशन की बैठक हुई। ९ दिसम्बर १९३० को एक मसविद तैयार किया गया जिसमे वास्तव में निरस्त्रीकरण के लिये कोई प्रभावकारी योजना नही थी। इसमे इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि जर्मनी के निरस्त्रीकरण ठीक उसी सीमा तक स्थिर रहे जो वर्साई की सधि में तय हो चुका है। जर्मनी ने इसे अस्वीकार किया और समानता का दावा किया २४ जनवरी १९३१ को राष्ट्रसघ की कौसिल ने यह निश्चय किया कि शस्त्रीकरण की कमी के लिए एक सम्मेलन किया जाय। २ फरवरी १९३२ को यह सम्मेलन हुआ।

ब्रिटिश राजनीतिज्ञ आर्थर हेडरसन इस सम्मेलन के सभापति थे सयुक्त-राज्य अमरीका ने भी इसमें भाग लिया। सोवियत रूस ने निरस्त्रीकरण के लिए एक क्रान्तिकारी योजना पेश की। जर्मनी ने समानता का दावा पेश किया। फ्रान्स ने अपनी सुरक्षा का राग गाया। २३ जुलाई को कठिनाइयों का सामना करने के बाद, वह स्थगित होगया। ११ दिसम्बर १९३२ को जर्मनी का समानता का दावा स्वीकार किया गया। १६ मार्च १९३३ को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान-मत्री रैम्जे मैकडानल्ड ने एक मसविद तैयार किया। इसमें पूर्ण रूप से निरस्त्रीकरण की तो नही किन्तु शस्त्रो तथा सेना को मर्यादित बनाने की योजना थी। ८ जून १९३३ को यह योजना स