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पोलैण्ड
 


वह नही चाहता था और जर्मन-विरोधी था--जमनी से समझौते की बातचीत शुरू की, और इस प्रकार पोलैण्ड और जर्मनी के बीच १० वर्ष के लिए अनाक्रमण सधि होगई। इसका एक कारण यह भी बताया जाता है कि पिल्सुड्स्की ने दो बार फ्रान्स और ब्रिटेन से, हिटलर के उत्थान के प्रारम्भिक वर्षों में, कहा कि वह जर्मनी के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़े और जर्मनी की सैनिक तैयारियों को रोकें। पिल्सुड्स्की के प्रस्ताव का परिणाम न निकलते देख पोलैण्ड ने जर्मनी से यह सन्धि करली। सन् १९३५ में मार्शल पिल्सुड्स्की की मृत्यु होगई। इसकी जगह मार्शल स्मिग्ली-रिज ने ले ली। प्रोफेसर मोसिकी प्रजातन्त्र का प्रधान रहा आया, किन्तु वास्तव मे देश मे राजनीतिक अशान्ति और अनिश्चितता रही। अक्टूबर १९३८ मे हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के प्रथम बॅटवारे में पोलैण्ड को भाग देना स्वीकार कर लिया था, किन्तु १९३९ के वसत में हिटलर पोलैंड के विरुद्ध पलट पड़ा और दाज़िग तथा पोलिश कोरीडर के वापस लेने की मॉग पेश की। फ्रान्स तथा ब्रिटेन ने पोलैण्ड की सहायता के लिए वचन दिया। १ सितम्बर १९३९ को जर्मन सेनाओं ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। जर्मनी की यान्त्रिक सेनाओं के मुकाबले पोलैण्ड की बुरी तरह पराजय हुई, और विस्चुला नदी के किनारे जब पोल लोग नई रक्षात्मक योजना कर रहे थे तब, १७ सितम्बर १९३९ को, रूस ने भी पूर्वी पोलैण्ड पर अनेक डिवीजन लेकर पीछे से आक्रमण कर दिया और उसके यूक्रेनी और श्वेत रूसी (बल्कि उससे भी अधिक) भाग पर कब्जा कर लिया। १५ दिन के युद्ध के बाद पोलैण्ड का पतन होगया। पोलैण्ड की राजधानी वारसा को चारों ओर से घेर लिया गया था। वहाँ फिर भी पोल बड़ी वीरता से लड़ते रहे, अन्त मे वे भी पराजित होगये। पोलिश सरकार रूमानिया भाग गई। राष्ट्रपति मोसिकी ने इस्तीफा दे दिया और अपने स्थान पर मो० रेक्जीविज़ को मनोनीत किया, जो पेरिस मे था। इसने फ्रान्स मे नई पोलिश सरकार बनाई और पोल सेना को पुनर्सङ्गठित किया, जो नार्वे और फ्रान्स मे लडी। जून '४० मे फ्रान्स के पतन के बाद यह सेना और पोलिश सरकार ब्रिटेन को चली गई। बरतानिया अपने युद्ध-मन्तव्यो मे घोषणा कर चुका है कि वह पोलैण्ड पुनः स्वतन्त्र करायेगा। जो पोलिश प्रदेश रूस ने अपने राज्य मे मिलाया