के दूसरे बलकान-युद्ध में, बलग़ारिया को पराजित देशों की लूट में से कुछ भी न मिला। उसके पहले साथी देश सर्विया, यूनान और रूमानिया उसके विरुद्ध होगये। विगत विश्व-युद्ध में बलग़ारिया ने, १९१५ में, जर्मनी का पक्ष लिया। १९१८ में, कुछ सफलता के बाद, उसका प्रभाव होगया। १९१९ की न्यूएली की संधि में उसे मक़दूनिया प्रदेश का कुछ भाग यूनान और यूगोस्लाविया को दे देना पड़ा, क्षतिपूर्ति भी करनी पड़ी और निरस्त्र होना पड़ा। राजा फर्डिनेन्ड प्रथम, अपने पुत्र बोरिस के हक में गद्दी छोड़कर, जर्मनी जाकर रहने लगा। स्तम्बुलिस्की के नेतृत्व में क्रान्तिकारी किसान-दल ने संगठन कर सत्ता अपने हाथ में ले ली। चार अन्य दलों सहित, ६ जून १९२३ को, सेना ने विद्रोह कर उसका वध कर डाला। इसके बाद बलग़ारिया में घोर अशान्ति रही मार-काट, हत्या, दङ्गा, बमबाज़ी। सन् १९२५ का सूफिया के गिरजे का मशहूर बम काण्ड इन्ही दिनों हुआ। सन् १९२६ में प्रजा-सत्तावादी दल के शासन काल में देश में कुछ शान्ति होगई। परन्तु १९३१ में अशान्ति फिर फूट निकली। १९३३ में दक्षिण-पन्थी सरकार बनी। अन्त में, १९३५ में, राजा बोरिस खुद अधिनायक बन गया। अन्य बलकान-राष्ट्र—रूमानिया, यूगोस्लाविया, तुर्किस्तान तथा यूनान—मित्रतापूर्वक रहते हैं। बलग़ारिया को इन सबके विरुद्ध शिकायतें हैं। वह यूनान तथा यूगो-स्लाविया से मक़दूनिया को वापस लेना चाहता है।
३१ अगस्त १९४० को दक्षिण दब्रूजा-प्रदेश बलगारिया को वापस मिल गया। प्रारम्भ से सोवियत रूस के हस्तक्षेप तथा प्रभाव के कारण बलग़ारिया तटस्थ रहा। इटली-यूनान युद्ध में मुसोलिनी के गौरव का जो विनाश हुआ, उसकी पुनर्स्थापना के लिये हिटलर ने कहा कि जर्मनी यूनान पर हमला करेगा। जर्मनी बलग़ारिया पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता था, परन्तु रूस बाधा डालता रहा। सन् १९४१ में बलग़ारिया जर्मनी के प्रभाव में आगया, वह त्रिदल-सन्धि में शामिल होगया। उसने नात्सी सेना को देश मे घुस आने दिया। यही से जर्मनी ने यूगोस्लाविया और यूनान पर हमला कर दिया। बदले में उसको इन दोनों देशों के वह भू-भाग मिल गये, जिनके लिये यह दावा कर रहा था। ५ मार्च १९४१ को बरतानिया ने बलग़ारिया