लेने के लिए हमले शुरू कर दिये हैं और वह सफलता प्राप्त कर रहे हैं। जापानी साम्राज्यवाद ने, शायद उसके जवाब में, भारत पर हमले करने प्रारम्भ कर दिये हैं।
ब्रह्मा बड़ा सम्पन्न देश है। इस देश में लकड़ी के बड़े जंगल हैं। तेल, टीन, कच्चा लोहा तथा जवाहरात भी निकलते हैं।
ब्रह्मा-चीन-मार्ग–सन् १९३६-३८ में यह सड़क बनकर तैयार हुई। ब्रह्मा में उत्तर रेलवे लाइन लाशियो में समाप्त होजाती है। यहाँ से चीन की वर्तमान राजधानी, चुग्किंग्, तक १४०० मील लम्बी, यह सड़क जापानियो द्वारा, चीन को युद्ध-सामग्री और रसद भेजने-भिजाने के समुद्री मार्ग बन्द कर देने पर, बनाई गई थी। हज़ारो चीनी कुलियों ने, अपने जीवन तक का बलिदान देकर, इसे पूरा किया था। ७०० मील तक यह सडक पर्वत-मालाओ मे होकर जाती है, जिनमें सबसे ऊँचा पहाड़ ८,५०० फीट ऊँचा है। जुलाई '४० मे बरतानवी सरकार ने जापान के मतालवे और आस्ट्रेलियन सरकार की प्रार्थना पर, तीन महीनो के लिये, इस सड़क को बन्द कर दिया था। आस्ट्रेलियन सरकार जापानी धमकियो से भयभीत होउठी थी। इसलिये ब्रिटिश सरकार ने इस समझौते पर, कि इन तीन मास में जापान चीन से समझौता करले, सड़क द्वारा चीन को सामान जाना रोक दिया। किन्तु जापान ने अपने ब्रिटिश-विरोधी रवैये को नहीं बदला, अतः तीन महीने बाद, १८ अक्टूबर '४० को, सडक फिर खोल दीगई। सडक के जापान के हाथ मे चले जाने से चीन की कठिनाइयों बढ़ गई है, किन्तु सयुक्त राष्ट्र हवाई रास्ते से चीन को बराबर लडाई का सब सामान भेज रहे हैं, और, आशा है, बर्मा के साथ ही यह सड़क फिर शीघ्र ही अपने हाथ मे आजायगी। २० मील प्रति घण्टे से अधिक तेज कोई मोटर इस सड़क पर नही जा सकती। बस तथा लारी एक सप्ताह का समय ले लेती हैं। इस सड़क पर प्रतिदिन १०० से अधिक लारियाँ तथा २०० टन युद्ध-सामग्री ब्रह्मा से चीन को जाती थी। चीन से यह लारियाँ कच्चा रेशम, टीन आदि लाती थीं। मई से अक्टूबर तक, वर्षा ऋतु मे, पहाडो के गिर जाने से मार्ग ख़राब होजाता था, इसलिये सिर्फ आठ-दस लारियाँ प्रतिदिन जाती थी। इसके बनाने मे