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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/२३७

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भारत
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और कौंसिल ऑफ् स्टेट। असेम्बली में, जिसकी स्थापना १९२१ में हुई थी, १४१ सदस्य हैं, जिनमें १०५ निर्वाचित और शेष मनोनीत हैं। कौंसिल ऑफ् स्टेट् में ५८ सदस्य हैं, जिनमें ३२ चुनाव द्वारा होते है। दोनों के मताधिकार में बड़ी भिन्नता है। असेम्बली का कार्य-काल तीन वर्ष है। (परन्तु सन् १९३४ के बाद से अभी तक इसका चुनाव ही नहीं हुआ है, वाइसराय द्वारा इसका कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा है।) कौंसिल आफ् स्टेट् का चुनाव पाँच साल के लिये होता है। वाइसराय इसकी अवधि भी घटा-बढ़ा सकता है। वाइसराय की कौंसिल भारतीय धारासभा के प्रति उत्तरदायी नहीं है। सुपठित और सम्पन्न समुदाय ही असेम्बली के चुनाव में मत दे सकता है, और भारत जैसे सुविशाल देश में केवल ५ फीसदी के लगभग असेम्बली के मतदाता हैं। गर्वनर-जनरल, सम्राट् की सहमति से, असेम्बली की इच्छा के प्रतिकूल, ब्रिटिश भारत के हित के नाम पर, कानून बना सकता और असेम्बली द्वारा स्वीकृत मसविदे या प्रस्ताव को, अपने विशेषाधिकार (power of veto) द्वारा, रद कर सकता है।

(२) प्रान्तीय शासन––ब्रिटिश भारत में, सन् १९३५ के विधान के अनुसार, ११ गवर्नरों के प्रान्त हैं : मदरास, बम्बई, बंगाल, पंजाब, संयुक्त-प्रांत, मध्य-प्रांत, बिहार, उड़ीसा, सिंध, सीमाप्रांत तथा आसाम। प्रत्येक गवर्नर के प्रान्त में निर्वाचित प्रान्तीय व्यवस्थापक सभा या प्रान्तीय असेम्बली है। सिर्फ बंगाल, बम्बई, मदरास, संयुक्त-प्रान्त, बिहार तथा मध्य-प्रान्त में द्वितीय धारासभा या प्रान्तीय कौंसिल भी हैं। प्रान्तीय लेजिस्लेटिव असेम्बली का कार्यकाल ५ वर्ष है। प्रान्तीय कौंसिलें स्थायी हैं। इनमें से प्रत्येक एक-तिहाई सदस्यों का तीन वर्ष बाद, दूसरे एक-तिहाई का ६ साल बाद, तीसरे एक तिहाई का नौ-साल बाद चुनाव होता है। कौंसिलों में मनोनीत सदस्य भी होते हैं। प्रान्तीय असेम्बली के मतदाताओं की संख्या जनसंख्या का १२ प्रतिशत है, यानी भारत की कुल जनसंख्या में से केवल ३३ करोड़ को मताधिकार प्राप्त है।

प्रान्तों को शासन-संचालन गवर्नरों के हाथ में है। अपनी सहायता के लिये उन्हें मन्त्रि-मण्डल बनाने का अधिकार है। प्रत्येक प्रान्तीय धारासभा के बहुमत-दल के नेता को आमंत्रित कर गवर्नर उसके परामर्श से मन्त्रियों