की नियुक्ति करता है। मन्त्रियों के कार्यों में सहायता देने के लिये पार्लमेन्टरी सेक्रेटरी नियुक्त किये जाते हैं। मंत्रियों तथा सेक्रेटरियों की संख्या निर्धारित नहीं है। मन्त्रिमण्डल प्रान्तीय धारासभा के प्रति उत्तरदायी होता है। 'विशेष उत्तरदायित्व' तथा विशेषाधिकार के मामलों को छोड़कर गवर्नर मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करता है। परन्तु उपर्युक्त विशेष उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में उसे वाइसराय के आदेशानुसार कार्य करना पड़ता है। वह वाइसराय के द्वारा, भारत मन्त्री के प्रति इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिये, जिम्मेदार है। धारासभा द्वारा स्वीकृत मसविदों को स्वीकार करने अथवा न करने का अधिकार भी गवर्नर को है, या वह मसविदे (बिल) को विचारार्थ वाइसराय को भेज सकता है। यदि गवर्नर की सम्मति से प्रान्त में अशान्ति की आशंका है, तो वह विशेष क़ानून बना सकता है। वह विधान को भी स्थगित कर अपने सलाहकार नियुक्त कर सकता और प्रान्त का शासन कर सकता है। मंत्रियों को वह बरख़ास्त भी कर सकता है।
(३) देशी राज्य––पृथक् लेख देखिए।
(४) संघ-शासन––१९३५ के भारतीय-शासन-विधान में संघ-शासन की व्यवस्था की गई है। इसमें ब्रिटिश प्रान्तों तथा देशी रियासतों को मिला कर संघ-राज्य बनाने की योजना है। इस योजना के अनुसार वाइसराय का एक मंत्रि-मण्डल होता और यह मंत्रि-मण्डल संघीय धारासभा के प्रति उत्तरदायी होता। इसमें भी वाइसराय को, मंत्रि-मण्डल के निर्णय के विपरीत, कार्य करने का पूर्ण अधिकार होता। यह संघ-प्रणाली अभी तक कार्यान्वित नहीं की जा सकी है। भारतीय राष्ट्रीय महासभा इसके विरुद्ध है। मुसलिम लीग को भी यह संघ-शासन स्वीकार नहीं था। उसके विरोध के कारण कांग्रेस से भिन्न है। उसके मतानुसार संघीय धारासभा में हिन्दू बहुमत होगा, जिसे वह स्वीकार नहीं करती। तीसरे, सभी देशी राज्यों के शासक भी इसमें शामिल होने को तैयार नही हैं, क्योंकि उन्हें अपनी रियासतों में शासन की एक निश्चित व्यवस्था करनी पड़ती। वाइसराय देशी नरेशों को संघ में शामिल होने के लिये उत्साहित कर ही रहा था कि १ सितम्बर १९३९ को महायुद्ध शुरू हो गया और वाइसराय ने इस योजना के संबंध में होनेवाले प्रारम्भिक