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महेन्द्रप्रताप
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शीघ्र ही अरुचि होगई और प्रान्तीय सहयोग-विभाग मे इन्स्पेक्टर होगये । १६१६ मे महात्मा गांधी की निगाहो में चढ़ गये । वह उन्हे साबरमती आश्रम लेआये । महादेव देसाई महात्मा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी बने । १९१६ में ‘यंग इडिया' और गुजराती ‘नवजीवन’ के सम्पादन में महात्माजी के सहकारी बने, जबकि गांधीजी ने ‘यंगइंडिया' को श्री जमुनादास द्वारकादास से ले लिया था । १६२० में महात्माजी ने प्रयाग के ‘इन्डिपेन्डेन्ट' का सम्पादन करने के लिये देसाईजी को भेजा । १९३१ में, गांधीजी के सेक्रेटरी की हैसियत से, राउन्ड टेवल कान्फ़रेन्स के अवसर पर, विलायत गये । सन् १९३३ के गांधीजी के आमरण-व्रत के समय, यरवदा जेल में, उनके साथ बन्दी थे । गांधीजी की नीति को हृदयंगम कर लेने के कारण ही उन्होने महादेव देसाई को ‘हरिजन' का सम्पादक बना दिया था, और इस पत्र मे तथा अन्यत्र वह ‘एम० डी०' नाम से खूब लिखा करते थे। गुजराती और अंगरेज़ी शैली पर उनका समान रूप से अधिकार था । गान्धीजी जैसे विश्व-विख्यात महापुरुष के दैनिक पत्र-व्यवहार को वही संभाल पाते थे। गान्धीजी के निकट सामीप्य मे रहने का उन्हे अद्वितीय, अलभ्य अवसर प्राप्त हुआ। महादेव भाई की मृत्यु में अपने युग का तुलसीदास चला गया और राष्ट्र की इस साहित्यिक क्षति की पूर्ति अब असम्भव है। 'भारत छोडो' प्रस्ताव के बाद 8 अगस्त १९४२ को महादेव भाई भी, । गान्धीजी आदि नेताओं सहित, पकडे गये और बम्बई सरकार कीविज्ञप्ति से पता चला कि, ६ दिन बाद, १५ अगस्त '४२ के प्रातःकाल, नजरबन्दी के अज्ञात स्थान में, हृद्गति रुक जाने से, उनका देहान्त होगया। वहीं उनका दाह हुआ। | महादेव भाई ने पच्चीस वषों तक, गांधीजी के सहायक और उनके परम विश्वासपात्र रहकर राष्ट्र की बहुमूल्य सेवा की । उनका जीवन देश की स्वाधीनता के लिये लडनेवाले एक सैनिक की भॉति आरम्भ हुआ और उसीकी भॉति समाप्त भी । अपने देश और देवता पर वह बलिदान होगये । महेन्द्रप्रतापसिह, राजा–भारत के निर्वासित देशभक्त । जन्म मार्गशीष शुक्ल ५, सम्वत् १९४३ वि० । पिता का नाम राजा घनश्यामसिंह । जन्म स्थान सुरसान ( ज़िला अलीगढ़ )। राजा हरनारायण सिह के दत्तक