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वाइसराय की कार्यकारिणी परिषद् ३४७ आरम्भ से छै-सात सदस्य नियुक्त होते आये हैं। इनमे आधे आई० सी० एस० योरपियन और तीन या चार गैर-सरकारी भारतीय सदस्य होते रहे हैं, किन्तु उन्हे कभी अर्थ-विभाग, सेना-विभाग तथा गृह-विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग नही सोपे गए। वाइसराय इस परिषद् का अध्यक्ष होता है । राजनीतिक विभाग तथा परराष्ट्र-विभाग उसके अधीन रहते हैं। भारत का प्रधान सेनाध्यक्ष भी इस परिषद् का एक सदस्य होता है । | यह परिषद् वाइसराय के शासन-सूत्र में सहयोग देने के लिये है । इस परिपद् की तुलना मत्रि-मण्डल से नहीं की जा सकती। इसके सदस्य केन्द्रिय धारासभा के प्रति नही प्रत्युत् वाइसराय के प्रति उत्तरदायी होते हैं । इनकी नियुक्ति सम्राट् द्वारा होती है। प्रत्येक सदस्य का वेतन प्रायः ५५००) मासिक और भत्ता अलग । सदस्य को एक सुन्दर बंगला, मोटर तथा स्टाफ भी मिलता है। जब युद्ध के कारण केन्द्रीय सरकार का कार्य अधिक बढा तथा वैधानिक संकट से उत्पन्न स्थिति के शमन के लिये भी, पहली बार परिषद् मे, जुलाई १९४१ में विस्तार किया गया और सदस्यों की संख्या सात से बारह करदी गई । पॉच नये पद बनाये गये और उनका भार भारतीयो को सोंपा गया । एक साल बाद, जुलाई १९४२ मे, कार्यकारिणी का पुनः विस्तार किया गया, और तीन नये सदस्य और बढ़ा कर उनकी सख्या पन्द्रह कर दीगई । १९३९ मे, युद्ध प्रारम्भ होने के समय, वाइसराय की कार्यकारिणी मे नीचे लिखे सात सदस्य थेः ( १ ) हिज़ ऐक्सिलेन्सी जनरल ( सन् १४२ के अन्त में फील्ड मार्शल ) सर आर्चीबाल्ड पर्सीवल, वेवल प्रधान सेनाध्यक्ष, (रक्षा-विभाग) सर्वमाननीय (२) नलिनीरंजन सरकार ( शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमिविभाग ); ( ३ ) सर ऐन्ड, क्लो ( यातायात-विभाग ); (४) सर हुरमसजी पी० मोदी ( रसदविभाग ), (५) सर रेजीनाल्ड मैक्सवैल (स्वराष्ट्र (होम)-विभाग); (६ ) दीवान बहादुर सर ए० रामस्वामी मुदालियर ( व्यापार-विभाग ) और (७) सर जेरेमी रेज़मन ( राजस्व-विभाग ) । इनके अलावा नीचे लिखे पॉच सदस्य और उनके लिये नये विभाग, जुलाई १९४१ मे, बढाये गयेः