पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/३५८

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विध्यालय से निकलकर विल्की १६१६ से ३२ तक न्यूयार्क आदि में वकालत करता रहा।१६३३ से अनेक अमरीकी छोटी-बडी बिजली कम्पनियों का प्रेसिडेन्ट, चेयरमैन और डाइरेक्टर है। १६३३ तक वह रूज़वेल्ट का ममर्थक और 'डेमोक्रेट' दल में था, किन्तु रूज़वैल्ट की 'नवीन योजना", विेशेपकर सस्ती बिजली के कारखाने कायम करने के रूजवैल्ट के कार्यक्रम के कारण -जिससे उसकी बिजली-कम्पनियों को हानि हुई- विल्की रूज़वैल्ट से विमुख होकर 'रिपबलिकन' दल में शामिल हो गया, जहाँ शीघ्र ही वह सर्वप्रिय बन गया। जून १६४० में रिपबलिकन परिपद ने उसे राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार मनोतीत किया। नवम्बर १६४० के चुनाव में उसको दो करोड रायें मिली, किन्तु रूज़्वैल्ट के मुक़ाबले में वह ४६, १४, ७१८ वोट से हार गया। जनवरी १६४१ में, जब वह इॅगलैएड गया था, तो उसने वहाँ पत्रकारों से कहा कि, 'मै शुध्द जर्मन हूँ। मुझे अपने जर्मन रक्त पर गर्व है, किन्तु मैं आक्रमण और अत्याचार से घृणा करता हूँ।' दूसरे अमरीकी 'रिपबलिकन' नेताओं के विपरीत उसने हिटलरवाद की तीव्र शब्दों में निन्दा की और ब्रिटेन को पूरी सहायता दिये जाने की वकालत की। उधार और पट्टा कानून का भी उसने समर्थन किया। अगस्त १६४३ में प्रेसिडेन्ट रूज़वैल्ट ने उसे अपना विशेप प्रतिनिधि बनाकर रूस, तुर्की,चीन और सुदूरपूर्व के मिस्र,अरव,फिलस्तीन, शाम, इराक, ईरान देशों में भेजा। स्तालिन आदि कई देश-नेताओं को वह रूज़वैल्ट के निजी पत्र लेगया। विल्की के हिन्दुस्तान आने की भी ख़बर थी, किन्तु यहाँ आने और यहाँ की राजनीतिक स्थिति में हस्तक्षेप करने से उसे इनकार कर दिया गया था। विलियम फिलिप्स-अमरीका के राष्ट्रपति रूज़वैल्ट के निजी प्रतिनिधि जो, जनवरी १६४३ में भारत में नियुक्त होकर आये हैं। युध्द के कारण लाखों अमरीकी सेना इस समय भारत में, धुरी-आक्रमण से उसकी रक्षा के लिये, यह तैनात हैं। अमरीकी संयुक्त-राज्य बरतानी सरकार को धन-जन से विपुल सहायता दे रहा है, इसलिये भी, उस सम्बन्ध के सरकारी आवश्यकीय कार्य-संचालन के लिये मि.विलियम फिलिप्स की भारत में नियुक्ति हुई है। अमरीकी जनता भारत की समस्याओं के सम्बन्ध में