• सावरकर ३६३ की लालसा उन्नीसवी सदी मे प्रबल रही और प्रतिद्वन्द्वी साम्राज्यो के संघर्ष के परिणामस्वरूप पिछला १६१४-१८ का महायुद्ध हुआ । साम्राज्यो की स्थापना पहले राष्ट्रीय ऐक्य के आधार पर हुई,औद्योगिक और सैनिक बल पर साम्राज्य बाट मे बने जैसे जर्मनी, इटली और जापान में। किन्तु जब इन्होने देखा कि बडी-बडी शक्तियाँ संसार का पहले से ही आपस मे बॉटे हुए या हडपे हुए बैठी हैं, तो इन्होने संसार के उन भूभागो पर आक्रमण शुरू किये जो अबतक बॉटे नहीं जा सके थे, जैसे जापान १६३२ से चीन के अपहपण मे सलग्न है और १६३५. में इटली ने अबीसीनिया को हडप लिया था। इन राष्ट्रो ने अपने पडोसी राष्ट्रो को भी, 'रहने या बसने के लिये स्थान प्राप्त करने के बहाने, हडपना शुरू कर दिया, जैसा कि हिटलरी-जर्मनी १६३८ से पूर्वीय योरप मे कर रहा है। बाद मे इन राष्ट्रो ने बडे राष्ट्रो के अधिकृत देशो पर भी अाक्रमण शुरू कर दिये, जैसे जापान ने १६४१ के अन्त मे ब्रिटेन,अमरीका और हालेण्ड के सुदूर-पूर्वीय साम्राज्य पर आक्रमण करके उसे हथिया लिया तथा जर्मनी और इटली बरतानवी साम्राज्य की प्राप्ति के लिये उत्तरी अफरीका मे लड रहे है और रूस पर इन्होंने साम्राज्यवादी लिप्सा के कारण ही आक्रमण किया है । सैद्धान्तिक रूप मे अगरेज़ विचारक हाब्सन ने १६१० मे कहा था कि आर्थिक म्वार्थ और साम्राज्यवाद मे घनिष्ठ सम्बन्ध है । १६१५ मे लेनिन ने, मार्क्स के सिद्धान्तानुसार, बताया कि साम्राज्यवाद शक्तिशाली पूँजीवादियो और सम्पत्तिशालियो की कृति है, जिन्हे माल तैयार करने के लिये कच्चा सामान चाहिये और उस माल को बेचने के लिये बडे-बडे बाज़ार । और यह दोनो काम बिना साम्राज्य की स्थापना और उसके विस्तार के असम्भव है । यह पूंजीवादी ही दूसरे देशो के हडपने के लिये युद्ध कराते है । साम्राज्यवाद की मूल भित्ति आर्थिक स्वार्थ है, वैसे ससार मे युद्ध राष्ट्रीयता, राजनीतिक अग्रणियो की महत्त्वाकांक्षा और किसी सिद्धान्त विशेष के प्रचार के कारण भी हुए हैं । सावरकर, वीर विनायक दामोदर--बार-एट-ला; हिदू-महासभा के अध्यक्ष, जन्म सन् १८८३; 'विहार' पत्र का संचालन किया; 'अभिनव भारत' नामक संस्था स्थापित की; शिवाजी छात्रवृत्ति लेकर इंगलैड अध्ययन के लिये गये । वहाँ 'स्वाधीन भारत समाज' स्थापित किया। १९१० मे उन्हे,
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