सुभाषचंद्र बोस ४०७ वापस चले गये। १६३६ मे योरप से लौटे । फिर पकड लिये गये और सुभाष बाबू जेल मे पुनः सख्त बीमार होगये। मार्च १६३७ मे अापको छोडा गया। स्वास्थ्य-लाभ के लिये डलहौज़ी जाकर रहे । लौटते ही कार्य मे जुट जाने से तबीअत फिर बिगड़ उठी । नवम्बर मे फिर योरप गये । योरप मे रहते समय ही देश ने आपको राष्ट्रपति चुना । १६३८ मे आपके राष्ट्रपति-काल मे आसाम मे कांग्रेस मत्रिमण्डल कायम हुा । आपने अथक दौरा करके सघ-शासन- योजना का जोरदार विरोध किया । १६३६ मे वह फिर, डा० पट्टाभि सीता- रामैया के मुकाबले में, राष्ट्रपति चुने गये । इस प्रश्न पर उनमे तथा कांग्रेस के अन्य नेताअो मे मतभेद उत्पन्न होगया । अ०भा० कांग्रेस कमिटी ने जून १६३६ मे बंबई में एक प्रस्ताव इस आशय का पास किया कि कोई भी कांग्रेस-जन प्रातीय काग्रेस कमिटी की पूर्व स्वीकृति के बिना सत्याग्रह नहीं कर सकेगा । इस प्रस्ताव की सुभाष बाबू ने जनता मे कडी आलोचना की। इस पर उनके विरुद्ध अनुशासन की काररवाई की गई और उन्हे तीन वर्ष के लिये काग्रेसकी किसी भी संस्था के चुनाव के अयोग्य घोषित कर दिया गया। सन् १९४० मे उन्होने कलकत्ता मे कालकोठरी- हालवैल स्मारकको ध्वस करने के लिये सत्याग्रह शुरू किया। इसमे उन्हे सफलता मिली। इस सत्याग्रह के सबध मे उन्हे सज़ा मिली, किंतु बाद में उन्हे स्वास्थ्य खराब होनेके कारण रिहा कर दिया गया। पीछे भारत रक्षा-विधान के अन्तर्गत कई मुक़दमे उन पर चले। स्वास्थ्य उनका ख़राब रहा । वह एकात और संयत जीवन व्यतीत करते हुए
पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४१२
दिखावट