अ०-भा० देशी राज्य-प्रजा-परिपद्-सबसे प्रथम अमरशहीद गणेशशङ्कर विद्यार्थी ने अपने 'प्रताप' द्वारा देशी राज्यों की बमित, दलित और शोपित प्रजा के त्राण के लिये उद्योग किया। श्रीविजयसिंह पथिक को राजस्थान में उन्हीने भेजा और वहाँ के प्रायः पन्द्रह देशी राज्यो मे आन्दोलन का सूत्र-सञ्चालन किया। तत्कालीन राजपूताना-मध्य-भारत सभा' की स्थापना उन्हीके प्रयत्न से हुई । पीछे यह आन्दोलन व्यापक हुआ । किन्तु सन् १९२७ से पूर्व भारत मे देशी राज्यों की प्रजा का कोई अखिल-भारतीय सगठन नहीं था, यद्यपि कुछ प्रमुख क्षेत्रो मे स्थानीय कार्यकर्ता, देशी राज्यो की जनता में, कार्य कर रहे ये | गुजरात तथा बबई प्रान्त के देशी राज्यों में श्रीअमृतलाल सेठ, मध्यप्रान्त के देशी राज्यो में श्रीअभ्यकर तथा राजस्थान मे श्रीविजयसिंह पथिक, श्रीरामनारायण चौधरी तथा श्रीजयनारायण व्यास आदि कार्यकर्ता सगठन-कार्य कर रहे थे । सन् १६२८ मे भारत के शासन-सुधारो की जॉच के लिए साइमन कमीशन भारत पाया । देशी राज्यो के कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगें कमीशन के समक्ष रखने के लिए अपना एक भारतव्यापी सगठन बनाने का निश्चय किया और सन् १९२७ मे क्बई मे अ०-भा० देशीराज्य प्रजा-परिषद् की स्थापना की गई । इस संस्था को प्रभावशाली बनाने मे भारत के राष्ट्रीय नेतानो ने पूरा सहयोग दिया । महात्मा गाधी, सरदार पटेल, स्व० सेठ जमनालाल बजाज, प० जवाहरलाल नेहरू, डा० पट्टाभि सीतारामैया, डा. राजेन्द्रप्रसाद, श्री मेहताब प्रभृति नेतायो ने देशी राज्यप्रजा आन्दोलनो का सचालन भी किया और परिषद् के सालाना अधिवेशनो मे नेहरूजी, सरदार पटेल, डा० कैलाशनाथ काटजू , सेठ बजाज, डा पट्टाभि ने सभापति का ग्रासन भी ग्रहण किया । इस परिषद् का लक्ष्य स्वाधीन सघीय भारत के एक प्रमुख अंग के रूप मे, अहिंसात्मक और शान्तिमय उपायो द्वारा, देशी राज्यो मे उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है । अखिल-भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद् के अन्तर्गत अग्रलिखित समितियाँ हैं-(१) राज्य समितियॉ, (२) स्वीकृत समितियाँ, (३) प्रान्तीय समितियाँ, (४) सामान्य सभा (General Council), (५) कार्य-समिति ( Standing Committee )। कार्य-समिति मे १५
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