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पर नही छोडा गया। अ° भा° मोमिन कानफरेन्स ने अपने अप्रैल '४३ के वार्षिक अधिवेशन मे, इस कारन, निन्दात्मक प्रस्ताव पास किया।
आज़ाद मुसलिम कानफरेन्स---भारत के स्वतन्त्रता-प्रिय मुसलमानो कि अखिल- भारतीय सस्था, जो मुस्लिम लोग को भारतीय मुस्लिम जाती की प्रतिनिधिक सस्था मि° जिन्ना को प्रतिनिधिक-अगुआ नही मानने। यह सस्था भारतीय राजनीतिक उद्धार के सम्बन्ध मे काग्रेस से सहयोग करती है और हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिये देश के सर्व साम्प्रदायिक-ऐक्य और सङठन की समर्थक है। 'पाकिस्तान' योजना को यह संस्था, शब्द और भावना दानो प्रकार से, इस्लाम की शिक्षा के विपरित और भारतीय स्वातन्त्र्य के लिये विधातक मान्ती है। अखिल-भारतीय आज़ाद मुस्लिम कानफरेन्स की कार्यकारिगी ने अपनी नई दिल्ली की बैठक में। १ मार्च १६४२ को, एक प्रस्ताव स्वीकार कीया था, जिसमें कहा था की मुस्लिम लोग भारतीय मुस्लिमो की एकमात्र प्रतिनिधि सस्था है। साथ ही, प्रस्ताव मे, ब्रितिश सरकार से कहा गया था कि वह शीघ्र ही भारतीय स्वाधीनता को स्वीकार करे और वास्त्विक अधिकार जनता के प्रतिनिधियो को सौपदे ताकि वह पूर्णा दायित्व के साथ शत्रु से देश की रक्षा कर सके और अन्य स्वाधीन देशों से सहयोग प्राप्त कर सके। न्वम्बर '४२ में आज़ाद मुस्लिम दल ने, भारतीय मुसलमानो के सबध मे, वास्त्विक स्थिति से परिचित कराने के उद्देश से, चीन, रुस, अमरीका और ब्रिटेन को एक डेपुटेशन भेजना निश्च्य किय था। इसका सदर दफ़्तर दिल्ली मे है। ईसपात---फौलाद या ईस्पात लडाइयो के कारणो मे एक बडा प्रलोभन रहा है। पाश्चात्य सभ्यता मे तेल और कोयले के साथ ईसपात का भी बडा भाग है। जिन देशों मे कच्चा लोहा पाया जाता है, साम्राज्यवादी योरोपीय देशों की लोलुप द्र्ष्टि से वह देश बचने नही पाये है, क्योकि यह विनाश्कारी सभ्यता जिन उपादानो पर खडी है, उनमे फौलाद भी मुख्य है। फौलाद किन देशो मे किस मात्रा मे बनता है, उसका व्यौरा (१६३९ के आँकडे प्रति दस लाख टन मे) इस प्रकार है:---सयुक्त-राज्य अमरीका २९'९; जर्मनी २३, रूसी सोवियत सघ १९२; ग्रेट ब्रिटेन १०६, फ्रास ६'१; जापान ६;