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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४७०

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जमीअतुल-उलमा-इ-हिन्द ४६५ डा० गिल्डर, श्री अणे, श्री रथीन्द्रनाथ ठाकुर ( स्वर्गीय कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पुत्र ) आदि उपस्थित थे । गीता आदि के श्लोको के पाठ के बाद उन्होने सन्तरे का रस पीकर व्रत को समाप्त किया। गॉल, जनरल चाल्स द-अपने देश की आज़ादी के लिये लड़नेवाले फ्रान्सीसियो के साथ अपनी सेना का आपने अच्छा सङ्गठन कर लिया है, और वह सेनायें अफ्रीका मे तथा अन्य रणक्षेत्रो मे लड रही हैं । सयुक्त राष्ट्रो के श्राप पूर्ण सहयोगी है और अमरीका तथा ब्रिटेन की मदद से अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये अग्रसर हैं। जनरल जिरौ भी आपसे पूरा सहयोग कर रहे हैं । कासाब्लांका सम्मेलन में आप भी उपस्थित थे । उन्होने राष्ट्रपति रूज़वैल्ट और मि० चर्चिल से फ्रान्स की सहायता के विषय मे चर्चा की । २७ जनवरी १६४३ को जनरल द गाल और जनरल जिरौ ने एक संयुक्त वक्तव्य मे कहा-"हम मिले और हमने वार्ता की है । हमने अपने लक्ष्य के विषय मे मिल कर निश्चय किया है, और वह है फ्रान्स की मुक्ति और मानव-स्वाधीनता की, शत्रु की पराजय द्वारा, पूर्ण विजय । इस उद्देश्य की पूर्ति युद्ध मे समस्त फ्रान्सीसियो के, मित्र राष्ट्रो के साथ-साथ, लडने से ही होगी ।” जमीअतुल-उलमा-इ-हिन्द-भारत के इसलामी-धर्मज्ञान-विद् प्राचार्यो की अखिल-भारतीय सस्था । (जमीअत = परिषद् : सम्मेलन । उलमा, प्रालिम का बहुवचन । आलिम = विद्वान् , कोविद् , पण्डित, इसलाम के अनुसार धर्मशास्त्रवेत्ता, ईश्वरशास्त्रविद् ) । ससार के प्रायः सभी, विशेषकर एशियाई मुसलमानी देश-प्रदेशो मे, ऐसी जमीअते पुरातन काल से स्थापित हैं । भारतीय जमीअत-उल-उलमा का स्थापन-काल लगभग पचास वर्ष पुराना है । विगत विश्व युद्ध के परिणाम-स्वरूप तुर्की के अङ्ग-भङ्ग के विरोध और खिलाफत आन्दोलन से अद्यावधि शुद्ध इसलामी और भारतीय विकास-सम्बन्धी सभी प्रगतियों मे जमीअत भारतीय राष्ट्र के साथ पूर्ण सहयोग करती रही है। इसलाम के मानव-बन्धुत्त्व, सार्वजनिक स्वातन्त्र्य, सामाजिक साम्य और एकेश्वरवाद का प्रतिपादक होने से जमीयत भारतीय समाज की स्वाधीनता की स्थापना के प्रयत्नो मे अपनी सम-सामयिक राजनीतिक