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शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स ४७९

और प्रान्तीय धारा-सभाओ में शियो के लिये जगहे मुक़रर्र दी जायेंगी, किन्तु
बाद में बोर्ड अपने वादे से फिर गया । फलत: कान्फरेन्स ने मुसलिम पार्लमेटरी
बोर्ड से असहयोग कर दिया । व्यक्तिगत रूप से भी कोई शिया उसका मेम्बर
नहीं रहा । कान्फरेन्स ने १९३५ के भारतीय शासन-विधान का विरोध करते
हुए विधान-निर्मात्री परिषद द्वारा देश का शासन-विधान बनाये जाने का
प्रस्ताव स्वीकार किया । १९३७ मे कान्फरेन्स ने शियो को बिना किसी शर्त
के कांग्रेस मे सम्मिलित होजाने का आदेश दिया, किन्तु १९३९ के आराम्भ
मे मदहे-सहाबा और तबर्रा के झगडे मे सयुक्त-प्रान्तीय काग्रेसी सरकार द्वारा
सुन्नियों को लखनऊ मे मदहे-सहाबा पढ़ने की आज्ञा देदेने के कारण
कान्फरेन्स काग्रेस से असन्तुष्ट रही । इस अवसर पर मौलाना अब्दुलकलाम
आज़ाद ने दोनों फिरको में समझौता कराने का प्रयत्न किया । उनके प्रयत्न
को सफलता प्राप्त होनेवाली थी, किन्तु इसी बीच काग्रेसी-मन्त्रिमण्डल मुस्तैफी
होगये और यह झगड़ा वैसा ही रह गया |

         आल-ईडिया शिया पोलिटिकल कानफरेन्स आल-इडिया मुसलिम लीग

को समस्त भारतीय मुसलिम-समाज की प्रतिनिधि-संस्था नही मानती । इन
विषय में कान्फरेन्स की केन्द्रिय कार्यकारिणी अपने २९ अक्टूबर १९३९ के
प्रस्ताव द्वारा स्पष्ट घोषणा कर चुकी है । उसे शिकायत है कि लीग यद्यपि
मुस्लिम अल्पमतो के सरक्षण का दावा करती है, किन्तु उसने शिया अल्प-
मत के अधिकारों को सदैव उपेक्षा की दृष्टि से देखा है और शियों के
सरक्षण में असफल रही है, और उसकी नीति सदैव बहुसन्खयक मुसलमानोन को
प्रसन्न और सन्तुष्ट करने की रही है । लीग से इस प्रकार असन्तुष्ट शियो को
दूसरी ओर, ब्रिटिश सरकार मुसलमानों से अलग जमाअत स्वीकार करने से
इनकार करती है और बहुसन्ख्यक मन्त्री जमा ग्रत उनको कोई अधिकार देने को
तैयार नही है । लीग से शिया जमाग्रत को शिकायत है कि भारत की