पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥३॥ जो देधे श्री रानी राय। पहले बलुमी मोहि गाय ॥ जीव लानि अब ही दुष लोय। जब हिं राय सों कलि देसोय ॥ दोला। दासी निपट सयान के मन मे करे बिचार। बिस्व भुवंगम जो उसी तिदि को नहिं उपचार ॥ चौपई। तब उषा मन करे संभारी। छिन छिन उठे बिस्ल की भारी॥ मन व्याकुल तन नाहिं संभारी। चित अंतर तें टरेन टारी॥ नैन भरे उर लेय उसास। सषी छोरि जीवन की त्रास ॥ टुष संताप कछु कया न जाई। बिरल पीर धित व्याकुल ताई ॥ सषी कहें सुनि राज दुलारी। मो सों कथा कहो निखारी॥ लों तन सषी तिहूं पुर गामी। सकल जीव को अंतरजामी॥ दोला। तेरी बिथा दुलास्येि हों मेटों हिन माहि। मो सों कहो पियारिये जिनि करि मेरी बाहि॥ चौपई। कुंवरि कहे तुम सुनहुँ पियारी। तो सों कथा कहीं निखारी॥ अाज रेन मेरी लोयन लागी। पलक न लगी सबै निस जागी॥ कुंवर येक सुपने में देष्या। कामरूप सुंदर चितरेषा॥ प्रोधिक आय प्रीति उनि कीनी। मन लरि लियो ठगोरी दीनी॥ ऐसा सषी चरित उनि कीना। अंषियां बेठि काहि जिय लीना॥