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सो कछु भेद बताय को महल कुंवर के जावं ॥ चोपई। लसि नारद पूछी तब बाता। कोन तात कोन है माता॥ चित्ररेष तब कहे बिचारी। प्रदोन पिता अरु रति हे माता॥ है अनुरुद्ध कृष्ण को नाती। सुनो बात नारद बलु भाती॥ जब गोपन की श्रावे बारा। तब तोहि लोय पुरी संचारा ॥ गउन लागे तोनि देली। तब तू पावे परम सनेही ॥ योला। जब रिष भेद बतायो गई द्वारिका माहि। कुंवर द्वार तब पूहिक किहि मारग म जाहि ॥ चौपई। द्वार येक दासी दिषगई। टूती पलुधि नगर मे जाई ॥ कुंवर तहां लेटे बिकराण। छिन छिन उठे बिस्ल की झारा ॥ नेन नीर भरि लेय उसासा। टूती चली गई तिहिं पासा॥ माया येक करी चितरेषा। श्रावत जात न काढू देषा॥ . पलंग पास ठाढ़ी बर नारी। कुंवर चिंत अति व्याकुल भारी॥ दोला। कुंवर पास पहुंची सषी मन अानंद कराय। . छल बल करि ले कुवर को कुंवरि मिलाउं जाय । . चोपई।। टूती कहे कुंवर सुनि बाता। कहो साच काले रंग राता ॥ हो जानों तिहुँ लोक को भेव। मुनि गंधव दानो अरु देव ॥