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॥१४॥ सुमन बर्षकि भूप उपर भरि मोद महान ॥ करहि नाना भांति सों ते परम मंगल गान। चले कठि सह बर्ण चारो कल्त जयति सुजान ॥ जायके कछु हरि पोरन को कन्यो इमि भूप। जालु निज निज धाम को तुम धारिमोद अनूप ॥ सुपर्ण मे चहि भूप स्यन्दन भयो परिसर पार। बजी दुन्दुभि पटक भेरी भरे शब्द उझार॥ लखो नन्दन सदृश बन बन गए ता के पास । घेरि लागे करण मृगया भूप अानद रास ॥ सिंह व्याघ्र बरान मारे मृगन के समुदाय । करो मन्थन बिपिनि को सन बीर सुभट सहाय ॥ , बचे ते नहि बान गोचर भर जे बनजीव। निकसि भागे सिंह बाघ बराह तजि बन सीव ॥ स्मत मृग टूरस्थ बानन्ह निकट जे चलि जात। तिन्ले रास्त मारि छिति पर करी सुखा निपात ॥ ले नाना शस्त्र सो लहि बन्य जीव अनन्त । रचो मृगया रज सों दुष्यन्त पृथिवी कन्त॥ भाजिके बनजीव प्यासे गए सस्तिा पास। लहत जल नहि गिस्त मूर्छित लोय पाय प्रयास ॥ किते भक्षत मांस मृग को सुभट भूखे जोन। भजे सुण्ड लपेटिके गज भए घायल तीन । मूत्र और पुरीष रारत भजे मद गज जात। .