सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

- ॥१५॥ मरदि धाम मारि तिन बलु करे मनुज निपात ॥ दुष्ट जीवन मास्कि क्षितिपाल अति बलवान। करो शोभन तोन कामन मुनिन को सुखदान ॥ बेसम्पायन उवाच। रोलाछन्द । मास्कि मृग बृन्द तेहा खेलि मृगया भूप। गए अन्य अन्य को अति सघन जोन अनूप ॥ सुत्पिपासाकुलित सिगरे सङ्ग के बर बीर।। छोडि सोङ गहन जो मृप और कामन धीर॥ परम स्य सुलरित तृणमय लसति भूमि सुठार। भरे सुमन समूह साखी सहित लसन उदार ॥ कूजि कलखं जिन में गूंजि मधुकर पेरि। लोति झरि मकरन्द की जेहि दन्द भागत हेरि॥ बढ़त सोम भार सो भरि भयो शीतल पोन। लसति सघन पराग धुन्धुरि परम आनद मोन ॥ करत में झमकार मिली कीर ख कल माम। भरो अति श्रानन्द भूपति देखि बन सुखदान ।। कुञ्ज सोस्त सुमन पुञ्ज सु करत अलि गुञ्जार। धाम काम बसन्त को मनु लसत सुषमा गार ॥ सुखद छाया सघन साखी भरे सुमम समूह । लसत नाना रंग के द्विज किए जिन पर मूह ॥ बिना कण्टक फले फूले बिटप सघन उदार।