सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥१७॥ करे जैसें रुष जो कोउ रुष काटिवे कु आवे तो 5 कों छांट करत रहे। जै और नांहि तो मीठो बच सुनो। जातें महांत जे हैं साथ तिन के ग्रह तें त्रा छूटहि भूमि'श्रादर में श्रासन को न मिटही अतिथ मिटहि प्रीय बचन कबहुँ न छूटई प्रण भूमि जल कबळु अतिथ को न छुटेहि और साधन की द्रष्टि है मीठे बचन सों ऊठिकरि अासन ई ईह साथ मार को धर्म है। जो महांत होई अरु मल्सथ लोई करि अरु जे मल्स्थ के घर में अतिथ निरास होई विमुष ज धरम सब प्राय ले जाई अरु प्रापनों सब पाप ग्र और साथ जे हैं महांत ते निर्गुणी कु प्राणी बिषे दय चंडाल कु के यहि प्रकास करे। तब गीध कहि सुने बिषे रुचि बळुत ए पंछीन के बालक ईला रहित में हौं। तब मंजार ईल सुनि भूमि डूई करि कान उपरे । ऐसी न होइ मे धर्मसास्त्र सुनि बैरागी होइ यह व्रत ! स्या बडो धर्म है ईद सब सास्त्र को सिधांत है। ज। अरु भली हे बुरि सब सहितु हे अरु सब हि को प्रति सर्गलोक पावहि । ओर एक धर्म सदा सहाइ कहे के साथि जांहि । अरु जो जिन को मांसु पाई जा व णकारे को मांस इन तु मे बहोत अंतर काले ते जा जीव हि तें जाई षांणकारे को एक छिन जीभ लि जैसें आप को मारिवे को दुष व्यापे तैसें और कु कों