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पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/३४

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॥१८॥ . तो बन के साग ते जे पेट भरे तो जीव काले को मारिये। इह भात . गीध को प्रतीति बटीई उहां हि त्यो मंजार आगे रहित रहित रित प्रति पंछिन के बालक पाई। षांत षांत जिन्न के बालक षाये ते षोज कान लागे । उन्ह को पोज कस्त जांणि मंजार उस्ते माग्यो । तब उन्ह पंछी योजत बोजत बालकन के सउषोउरा में पाये। तब सब पंछिन मिलिइ कही बिभ्रारु कीयो जु लमारे बालक इन हि बुटे गिळू _मारे। तब इलं जांनि सब पंछिन मिलि बुटो गीध माखो। ताते हुँ कहित हों अनजाने सु मेत्रिं न कीजे। इह बात सुनि वह स्याल क्रोध सों बोल्यो। म्यंत्र काग जा दिन तुम्ह प्रग सौ म्यंत्रि कीन्ही ता दिन इह तुम्हारे सिल कुल जानतु हो श्राजू तेहि मेत्री रित दिन अधिक होत है। और इस श्रापनी इह परायो इह बिचार मुर्षन्ह को है पंडितम कुं सब आपने हि हैं। जैसें इह प्रम मेरो म्यंत्र तेसे तुम ठु मारे म्यंत्र हो। तब प्रग कही बहोत बांत सों कोंन कार्य सब मिलि एक ठोर सुष सों रलिये। तब कागा कही ऐसी प्रिय होऊ जैसे तेरो बिचारु। तब सबै मिलि प्रतीति की प्रागे प्रात भवे अपने अपने कार्य कों गये। तब रहित रहित एक दिन अग सों स्याल कहि । म्यंत्र एक ठोर लो जव को घेत है चलो तुम को हि दोषांइ श्राउं। तु निति हि ऊहां चरि चरि भाव । तब प्रग को घेत दोषायो । घग देषे ते निति ही चरि चरित्रावे। तहां एक दिना वा को देषि पवारे जाल पसायो। तब अागि ले दिनि प्रग बहोरि चम्विा गयो। तब चरत हि जाल में अटक्यो। तब प्रग मन में बिचारन लाग्यो। प्राजि मो कों या जाल मे तें छिराईव को म्यंत्र बिनां और कोन समर्थ ले जु मोहि छूरावे। ईतुने