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॥२॥ अभेदानु दीयो अरु चित्रकर्म नाम उट वा को नाम धरि वह उहां की राष्यो। एक समै अति ब्रषाकाल मे स्यंघ भूषो भयो। तब संको बिनु अहार पाये दुषी देषि बाघु स्यारु कागु इन्ह तीन बिचार कीयो। अहो स्यंघ जैसे चित्रकर्न को मारे सो उपाव करछ । इह कहि दिषाइ जुई उद कांटे को पानहारो या ते मारो कोन कार्ड है। तब बाघु कहि । राजा या कों अभेदान दे राष्यो है कैसे मारिहे। तब काग कहि । ईह समये छिण राजा पापो करिले । जाते भूषी महतारी बेटा लु को न छाडे भूषी सापनी अपने अंडा लु को पाई भुषो कोन पाप न करे जाते छीण मनुष्य को दया नाही रहितु । ओर मद करि मानो लोई प्रासावधान बावरे क्रोधी भुषो लोभी उराणो उतावलो कामी र धर्म को न जाणेहि। इह बिचार करि स्यंबू के नियरे गये। स्यंषु पुछत कछू षावे को ल्याये। तब कागु कलि। राजा बलुत जतन करि षोड्यो परि अहार क न पायो। स्यंघु बोल्यो। अब क्यों जीवलिगे। कागु कलि । राजा लाथ को अहार छाउत तु लो ताते और लु ठौर नाहि पायतु। स्यंषु कहि। ईहां कोन अहार है ताते और ठोरु नाहि पाईयतु। कागु कान मे लागि कहि। इह चित्रकर्म उट है या को मारि पाईये। तब स्यंषु कहि। मारिये केसे में या को अभेदान दीयो है। जाते भूमिदान सोबर्णदान अंनदान अात्मादान ए सब दान अभेदान की बराबरि नाहि। और सब विधि करि जुक्त अश्वमेध जग्य कीये जु फल लोई सो फल सराणागत राषे लोई। तब कोगु कहि। राजा तुम्न मति मारलु राज रुम सो उपाव करि जु ईहे आप ली ते आपनो सरीर देते। स्यंधु ईह बचन सुनि