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॥३०॥ सरप अरु मेडक। जीरणवदान बन मे मंदविसरप नाम एक सरप हे सु बधि अति प्रहार को फिरि न सके सरोवर के तीर परि रहे। तब एकु मेडक वा सो दुरि हि ते कहि। अहो तुम्ह श्राप को अकार ठु नांहि षोजत परे ही रहित लो सु काले ते। तब सर्प कहि। जालु कला मो सु अभागे सुं पुछत हो। उन मेडक प्राधिरजि मानि ल्ल करि पुछी तो भी हम सों कही। तब सर्प कल्तुि है। अहो इन बंभपुर मे कोअन्य नाम ब्राह्मण हो। ता को बीस बर्ष को पुत्र गुणवंत अभाग्य ते मे काट्यो। तब ब्राह्मण पुत्र को सापु काट्यो देषि मुर्छित है सोक ते भूमि मे गिखो। पीछे वा नगर के बासी लोगु उलि के भाई बंधू सब मिलि उहां आये। जति सुष दुष मै दुरभषि मे सत्रु के जूध से राजद्वार में मसाण भूमि में जो ईन ठोर मे संगि रहे सोइ बंधु जानिये। तहां एक कपिल नाम ब्राह्मण कहि। अरे कोअन्य तु मुर्ष है जू ईल भांति रोवत है सुनु। जाते जु संसार मे उपज्यो ता को परलोक प्रति की गोद में बैठाइयत के पीछे माता की गोद में बैठाइयतु है जैसे धाई परले अापने हाथि लेई पीछे मल्तारी के हाथि देई सु ऐसे मनुष्य को सोक कहा कीजे। और सेना सहित बडे राजा जुधिष्टर प्रादि वे कहां गये उन्ह के बिवोग की साषि देवे कू भूमि स्ली है। जाते सरीर को प्रति नीरो हि है संपदा के आगे ही आपदा के संजोग के प्रागे हि बिजोग है ताते जू उपज्यो सु नसाई। और ईह देह घरी ही घरी घटित है मुये हि गई जांनिस्तु है जैसे काची घट पानी मे घरी ही घरी घटतु जाई पर फूटे लि जानिये। और जा