पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/५४

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॥३॥ कई एक बान ऐसे मारे कि रथ के घोडों समेत साथी उठ गया और धनुष उस के हाथ से कट नीचे गिरा। पुनि जितने अायुष उस ने लिये हरि ने सब काट काट गिरा दिये तब तो वह अति सुंझलांय फरी खांडा उठाय रथ से कूद प्री कृषचंद की शोर यों झपटा कि जेसे बाबला गीदड गज पर अावे के जो पतंग बीपक पर धावे। निदान जाते ही उन ने हरि के रथ पर एक गदा चलाई कि प्रभु ने झट उसे पकर बांधा श्री चाहा कि मारे इस में रुक्मिनी जी बोली। मारो मत भेया हे मेसे। छांडो नाथ तिम्रो चेरो॥ मूरख अंध का यह जाने। लक्ष्मी कंत दिमानुष माने । तुम योगेश्वर प्रादि अनंत। भक्त हेत.प्रयटत भगवंत ॥ यह जउ कहा तुम्हें पचाने। दीनदयाल कृपाल बखाने॥ . इतना कह फिर करने लगी कि साध जउ श्री बालक का अपराध मन में नहीं लाते जैसे कि सिंह स्वान के भूसने पर ध्यान नहीं करता और जो तुम इसे मारोगे तो होगा मेरे पिता को सोग यह करना तुम्हें नहीं है जोग। जिस ठौर तुम्हारे चल पड़ते हैं तहां के सब प्रानी आनंद में रहते हैं यह बड़े अचरज की बात है कि तुम सा सगा रहते राजा भीष्मक पुत्र का दुख पावे। ऐसे कह एक बार तो रुक्मिनी जी यो बोली कि महाराज तुम ने भला हित संबंधी से किया जो पकड