पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/६१

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भक्त माल। जयदेव। __ मूल। - छप्पे। जयदेव कबि नृप चक्रावे खंड मंउलेश्वर या प्रचुर भयो तिळु लोक गीतगोबिंद उजागर कोक काव्य नव रस सरस सिंगार को सार अटपटी अभ्यास करे तिहि बुद्धि बढ़ावे। राधा रमन प्रसंग सुनत ही निश्चय आवे॥ संत सरोरुह खंड को पना पति सुख जन जयदेव कबि नृप चकवे वंउ मंडलेश्वर श्र' टीका। श्री जयदेव किंदुविल्व गांव में रहे भक्त राज तो रस्खेि तू स्ले श्री बिरक्त लू स्ले सो एक ठोर स्हें नहीं प्रति । फिरें। एक बालान अपनी बेटी श्री जगनाथ राय प्रभु ने कयो जयदेव हमारे स्वरूप है यह सुता ति बाहि यो। सो विप्र ने सुता ले जयदेव के पास श्री जगनाथ देव की आशा है या को अंगीकार करो ।