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॥४॥ गान करायो। देवतन्त्र कन्यो यह तो हमारे ही होती है और कछु गावो यह तो देव लोक में लोय है उहां की अपेछा ते पाताल लू में जानि लीजे। एक मालिन की छोकरी खेत में बेगन तोस्ती यह पर गावती रोले। धीरसमीरे यमुनातीरे वसति वने वनमाली। श्री जगनाथ देव ता के पाछे फियो को अंग को बागो सब फटि गयो। सेवा समें जो राजा जाइ निहारे तो अचरज भयो। पूछते प्रभु ने कयो जो माली की छोकरी या भांति गीतगोबिंद पड़ती रोलेगी तो बलुत बागे फटेंगे एक को कहा झाले है। राजा ने आइ वा को ले अाइ मंदिर में बैठाय दे कन्यो कि या ठोर पद गायो करु। सो नित्य गावे। जब मरि गई तब भगवान ने फाका कियो श्री राजा सों जनायो जो मेरी भक्तिनि मरि गई में श्राजु अब नहीं खायो गाथा नहीं सुन्यो। तब राजा ने गवायो। ओर सेन आस्ती समे अद्यापि गान होतु है। तब ही नगर में डौंडी फिराय दई जो सब कोउ सुंदर ठोर बैठि गीतगोबिंद पाठ कियो करें। लाहोर में एक मुगल भीर माधो नाम पाठ करते काढू साधु तें नित नित सुनत सीख लियो। घोरे पर सवार भये जहां चले प्रभु वा के सन्मुख जीन के ले पर बैठे चले जाहि। एक साधु ने देखा ता कों मूछी पाइ गई। प्रो वा ने कयौ तब वह फकीर भयो सालिक बेग नाम भयो। एक बार मुगल दिल्ली में प्राइ गीतगोबिंद पाठ करे ता के Ce vers se trouve dans le texte sanscrit du Gtta Govinda, V, 11. En voici la traduction latine littérale, telle que la donde M. Lassen: Manet in Yamunæ ripa, molliter ventilata in sitva , silvestribus floribus coronatus.