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. ॥७॥ भोन संग भस्वा सु गहे मोन सुनि पखिरी है। करी अन ससि भागे मोहोरे रुपैया मागे पटे दई चीधर के तब ही निवेरी है। प्राग्या मागि टोडे आये कभू भूषे कभू धाये सोचक ही दाम पाये गये हैं मान कों। मोहोरन भाउ भूमि गखो देषि छोडि आये कल्यो निसि तिया बोली जावो सर प्रान कों। चोर चाहे चोरी करे सुनि वाही ओर टरे देषे जो उघारि सांप उरे लते प्रान कों। ऐसें आय परी गिनी सात शत बीस भई तौरे पांच बांट करे एक के प्रमान कों। जोई श्रावे द्वार ताहि देत हे अहार और बोलिके अपार संत भोजन करायो है। बीते दिन तीन धन पाय ष्याय छीन कियो लियो सुनि सूरज सेन नाम नृप देषिवे को प्रायो है। देषिके प्रसन्न भयो देवो दीक्षा मोलि दीक्षा है अतीत को श्राप सो सुहायो है। चालो सोई करो वै कपाल मो कों टरो अनू धरो प्रानि संपति श्री रानी जाय लायो है। करिके परीक्षा ... कई दीक्षा संग रानी दई भईये हमारे परदान संत सों। दियो धन बोरा कछू राष्यो दे निहोरा भूप मानत न छोरा बरो मान्यो जीव जंत सों। सुनि जरि बरि गये भाई सेन सूरजि के उरज प्रताप कहा कहे सीता कंत सों। अायो बनिजारो मोल लियो चाहे पेलनि को दियो बहकाय कही पीपा जू अनंत सों। बोल्यो बनिजारो दाम घोलि पेला दीजिये जू लीजिये जू प्राय गाव चस्न पठाये है। गयो उठि पाछे बोलि संतनि महोछो कियो अायो वाही समें कही लेवो मन भाये हैं। दरसन कर लिये भक्ति भार भयो पानिके बसन सब साधु पहिराये हैं। और दिन 'न्हान गये घोर पति छोडि दियो लियो बांध्यो दुष्टनि में पायो मानों लाये हैं । गये हे बुलाये श्राप पाछे घर संत आये अन कळू नाहि करूं