पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/९०

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॥७४॥ संकेत ताही दिन ही सौं लाग्यो त भाई सोई समे चेत कब छबि चाषिये। आये रघुनाथ साथ लछमन चढे बोरे पट रंग बोरे ले कैसे मन राषिये। पाछे स्लुमान श्राय बोले देषे प्रान प्यारे नेकु न निहारे मे तो भले फिरि भाषिये। हत्या करि बिग्र एक तीरथ करत प्रायो कहे मुष राम भिक्षा गरिये हत्यारे को। सुनि अभिराम नाम धाम मे बुलाय लियो दियो ले प्रसाद कियो शुद्ध गायो प्यारे को। भई द्विज सभा कहि बोलिक पठाये श्राप केसे गयो पाप संग लेके वे हत्यारे को। पोथी तुम बांची लिये सार नही साची अजू ताते मत काचो दूर को न अंध्यारे कों। देषी पोथी बाच नाम महिमा ढूं कही सांच रे पे हत्या करे केसे तरे कहि दीजिये । श्रावे ज्यो प्रतीति कहो कही या के हाथ जैवे सिव जू को बेल तब पंकति मै लीजिये। थार में प्रसाद दिवो चले जहां पन कियो बोले श्राप नाम के प्रताप मति भीजिये। बेसी तुम जानो तेसी केसे के बषाने अलो सुनिके प्रसन्न पायो जैसे धुनि रोझिये। आये निसि चोर चोरी करन लन धन देषे स्याम धन लाथ चाप मर लियो है। जब जब श्रावे बान सांधि उर पावे वे तो अति मंउरावे रे पे बली टूरि किवे है। भोर श्राप पूछे अजू सावरी किसोर कोन सुनिकर मौन रहे आंसु गरि दिये है। दे सबे लुटाय जानी चोकी राम राय दई लई उन्हो दीक्षा सीक्षा सुद्ध भये लिखे है। कियो तन विप्र त्यागि लागि चली संग तिया दूर ही तें देषि किया चरण प्रनाम है। बोले यो सुलागवती मयो पति होनूं सती अब तो निकसि गई ज्यांङ सेवो राम है। भये सब साधु व्याधि मेटी ले बिमुष ता की जा की बास स्ले तोन सूझे स्याम धाम है। दिल्ली पति पात