पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१६०

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अति परमाणु विद्युत्करण ज्ञानकोश ( अ ) १४६ अति परमाणु विद्युतकण बराबर देखी जाती है कि विद्युद्धारित विद्यु किरणविक्षेपण दो स्वतंत्र रहने वाले किरण-विक्षे. दर्शक रेडियमके अभावमें भी विदयुत्को धीरे धीरे पणोंकी अपेक्षा कम होगा। ब्यासके दोने सिरों कम करता है। यह विद्युन्नाश वातावरणके पर रहने वाले विद्युत्कणोंका किरण-विक्षेपण विद्युदरावी-भवनसे होता है। यह अरवीभवन एक सिरके किरण-विक्षेपण के १. भागके बराबर कुछ अंशोंमें बाहर आनेवाले किरणविक्षेपसे होता है भी नहीं होता। यदि काटकोन त्रिकोणके चार और कुछ अंशोंमें उन धातुओंके किरण-विसर्जन कोनों पर रहने वाले चारों विद्युत्कणोंके किरण से होता है जिस धातुके पत्रोंकी पट्टी विद्युद्दर्शक विक्षेपणकी गतिका ११. भाग हो तो एक साथ ही में बैठाई रहती है। इससे यह सिद्ध होता है कि चारोंकी गति ६... होगी। किन्तु चाहे किसी साधारण पदार्थों में भी किरण-विसर्जन होता है। कारणसे ही क्यों न हो यदि वे सम प्रमाणसे सब पदाथों की निकटवर्ती वायुमै विद्युदण्वी- निकाले जावे और उनकी एक साथ ही गतिका भवन होता रहता है। इसी आधार पर नार्मन विचार किया जावे तो उनका अन्यान्य-किरण- कम्वैल नामक विज्ञानवेत्ताका कथन है कि प्रत्येक विक्षेपण नष्ट नहीं होता वल्कि सहसा बढ़ता ही पदार्थों में यह किरण-विसर्जन-धर्म होना चाहिये। जाता है। तीब्र उष्णता मानके योगसे होने वाला इसके अतिरिक्त प्रयोग द्वारा यह भी देख पडता किरण-विक्षपण भा इसा प्रकार सहसा किरण-विक्षेपण भी इसी प्रकार सहसा तीव्र होता है कि प्रत्येक पदार्थकी कुछ विशिष्ट किरण-विस- जावेगा। जन क्रिया होती है। इससे इस कल्पनामें बाधा | (२०) परमाणुओंकी अस्थिरता-जब तक कोणा- पडती है कि प्रत्येक पदार्थ में थोडा बहत रेडियम मकवेग किसी मर्यादाकी अपेक्षा अधिक होगा का भाग रहता है जिससे वह उत्पन्न होती है अतः तभी तक परिभ्रमित् विद्युत्कण बलयस्थिर रहता यही सिद्ध होता है कि किरणविसर्जनक्रिया है। यदि कोणिक विद्युत्कण मानलिये जाय, रेडियम अवशेषकी ही नहीं बल्कि प्रत्येक पदार्थ और स्वस्थ तथा स्थिर रहते हैं तो भी यदि वे के अंगमें रहने वाली विशिष्ट किरणविसर्जन घूमने लगे तो उनकी स्थिरता बढ़ने लगती है। क्रिया है। यदि किरणविसर्जन पृथक्करणका किन्तु काटकोनके चतुष्कोणक चार काना पर चिह्न है, और इसके कारण यदि प्रत्यक्ष पृकक चार विद्युत्कण लिये जाँय तो वे केवल घूमते ही करण और द्रव्य नाश होता हो तो फिर यह हैं और स्थिर रहते ही नहीं। उनकी गति यदि ५७ किरण-विसर्जन जिन पदार्थों में तीव्रताके साथ के नीचे श्रावेगी तो उनकी काटकोन चतुष्कोणकी होती है वे पदार्थ बहुत ही थोड़े मागमें अस्तित्व | रचना बिगड़कर वह एकदम चतुष्कोण फलककी में होना चाहिये। जो साधारण चिरकालिक | रचनामें आते हैं। पांच हो तो उनको इसकी द्रव्य हैं वे किरण-विसर्जनमें बहुत तीव्र नहीं होते अपेक्षा भी अधिक वेगकी जरूरत है । यदि छः हो किसी भी पदार्थकी विपुलता उसके उत्पादनके तो किसी भी वेगसे स्थिर नहीं रह सकते, किन्तु प्रमाण, उसकी आयुष्यविधि तथा नाश-प्रमाण पर यदि उसीमें ही सातवां कण मिलाया जाय तो वह ही अवलम्बित रहती है। वलय स्थिर रह सकता है। यदिबारह विद्युत्कणों (१९) विद्युत्कण वलयांकित किरण-विसर्जन-कम्पित के स्थिर वलयकी आवश्यकता हो तो सात मध्य होने वाले या घूमने वाले एक विद्युत्कणकी किरण भागमें रखने चाहिये और उनके पास पास पांच विक्षेपण-शक्ति यदि बहुत कुछ भी हो तोभी उसके का वलय होना चाहिये । इस प्रकार बहुतसे कणो सम प्रमाण पर यदि कोई दूसरा विद्युत्कण आवे को भिन्न २ वलयोंमें व्यवस्थित रीतिसे बैठा सकेगे तो उन दोनोंकी किरण-विक्षेपण शक्ति बहुत कुछ किन्तु उन वलयोकी गति तो नियमित गतिकी कम हो जावेगी, क्यों कि वास्तवमें कुछ अन्तर अपेक्षा अधिक होनी चाहिये। यदि यह गति उस पर वे बिलकुल विरुद्ध अवस्थामें होते हैं। यदि की अपेक्षा कम होजाय तो फिर चाहे वह उसमेके किरण-विक्षेपण बढ़ाना हो तो व्यासके दूसरे सिरे एक ही वलयकी क्यों न हो तो भी सबकी रचना पर रहने वाला विद्युत्कण निम्न रीतिसे अङ्कित बिगड़ जाती है और उसके बाद नयी घटना होती होना चाहिये। प्रो. थामसनने दिखाया है कि है। इस समय परमाणुओंकी रचनामें एकाएक विद्युत्कणोंकी संख्या ज्या ज्यों बढ़ती है त्यो त्यो क्षोभ उत्पन्न होता है। इस क्षोभके बाद उन पर किरण-विक्षेपणकी संख्या किस भाँति कम होती माणुओंकी घटना होती है। नयी घटनामें संभाव्य जाती है। सम-भुज-त्रिकोणके तीनो कोने पर शक्ति कम होती है, और गति-विशिष्ट शक्ति बढ़ती यदि एक-जातीय विद्युत्कण हो तो उन तीनोंका है और कुछ परमाणुओंके निकल जानेकी संभावना