पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१७

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नभा पुनसिंघटढ मनेकी आश दे दो । उसने यह ४ कर यबूत्त कानेकौ व्यवस्था टीक रखकर, फिफा- कातून बनाया कि कोई किसी खोजों जयादली यन के साथ मर्व कब्रजा-आदि णनोंकों ध्यागमें सनी दोनेके लिये वाण न करे । रजरुर अकबर अपने काम काता था ।" अकबर अकबर मिल बनाने में षड़ा कुशल था । यद्यपि भली भाँति जानता था कि हिन्दुस्तश्चमैं राज्य वह बहुत पड़ा-लिखा नहीं था. तथापि वडे पडे दृ करना हो, तो वहाँ के रम्पार्था के साथ मित्रता विद्वानोसेकुशलताके साथ भाषण करता था । । करना आवश्यक है । इस कारण धर्म शयालाश्वहीं परिमित ज्ञान होनेके कारण किसी ब्रानपर राज्य-प्रर्वघफे संर्वघ मैं लोगों के साथ दयालुता का उसका विस्वास यही देठ जाता था । कभी-कभी व्यवहार कस्नेफा उसने निश्चय किया । उसके वह किसी वानपर विना पूर्ण रूपसे स्थिर क्रियेही शासनकाल: पूषर्धिमैं उसका व्यब्रहार ब्रहा उस कांमाँरै हाथ डाल देना था 1 पहले खलीफा नुत्तलभानके समान था परन्तु उरुराधेमैं-जपसे मंचपभ: मदे होंडा' उपदैशक्ति। करते थे । यह उसका ओर अनुलफ्लाशफा साथ हुआ-डसने सोन नं कि हदृर भी उसी प्रकाश कम अकार पिधर्पिथोंकैत्साथ प्रेम और दयाका व्यवहार मजा फनेदृक्वरे सौक्योंमे डादैश देनेके सिहँ ब्धडा हुआ, आरम्भ किया । छोटीचंक्यों ब्रार्तोंके लिये भी पान्तु कुछ भी बोल न सका ओय' चुपचाप उसने सूझा नियम क्या स्वये ये । द्दायिपौको बैठ गया । ठीक प्रकश्यइंसे चारा आदि मिलना है वा नहीं, शापन-रैल्मी-अक्लर्णमैं सबसे बंडा गुरंग प्रजा. यह देस्त्रनेकै लिये उम्नने हाथिव्रमृढे तेत्रट्वेह विभाग जिन था । वह हमेशा चाहा कम्बा भा, कि कियेथे । अकबर पिंश्ली भीव्रिव्रव्रका दृदृहै हाहिं खेणोंकौ' अनि शीष न्याय प्राप्त तो । जिस शझमैं करण करके पीछे उसकी व्यवस्था मानेका आदी षट मना था, उस शहरके सभी मुस्वामों का वह था । विभिन्न राजस्थान से वैवाहिक सम्बन्ध स्वयं निर्णयकानाथा । सत्मान्यदर्वेकै र्तार्गीकै र्ताढ़काइ उनसे पहूँचने वाली हानिको उसने साथ वह समाननाका व्यवहार काना था है परन्तु क्खिकुत्त ही मिटा दिया : उसे ठरालूम हुआ, कि संदाय' नथा पडे र्तागौपत्र' उसका कटाक्ष रहता हिनूतथा युसल्यानोंकां रक्त-भिश्रण हींरेंसे बहुत था । वह किसीके कहनेमे नहीं आना था 1 उसके खाम होगा । परन्तु इस मानकों सर्यसश्याप्प मैं स्वभावपै मृदुना और फठेश्चनाका विलक्षण प्नचक्लि क्ररनेमैं एस्ताम घर्म वाधफ होता था है संभिश्रणदुआ या । फिर भीयउलेदयष्णु९र इसलिये उसने अपने -धार्पिक- बिभास में मिहन्नसाच्चा क्रदृ सकते हैं । परिवर्त्तन किया । राजपूती-क साथ उसके युद्ध अकबर बलवान तभादृ निशाना माषनेमै वदुत्त यूँ करनेका मुख्य कारण राज्यका विस्ताअं करना नहीं, ही कुशल था । 'संग्राम' नामक उसकी एक प्यारी था वग्न, उनसे भिन्नता स्थापित करना था ! उसे व्रन्दूरू थी ५ उस व्रन्दूहुँफसे उसने हजारों मनुष्यों राजपूटोकी सहायता मिली थी, एसी कारण को यमलोक पहुँचाया था । व्यवहार की पमुत्तसी अफ़गान शौरनुहाँत्तदृसफै म्नस्मपैम्नरामृदृडा सके । ब्रातें वह स्वयं फाना जानना था । तोप छोड़ने १ च जथा वंदृकु बनाने के कामों की देखभाल वह स्वयं अकब्ररका मरुत्यपूपृ कायर था कि उसने जस्ता था । हँथम्न, प्लम्नम्भ, जानवरोंकौ लडाई सारेंउत्तर-भाकूदृकौ पूण सपक्ष अपनेअधिवारमैं आदिके देखने का उसे यड़ा शौक था । पीतं। जेतना ५ कर: सिंमृच्चिआरै उसका नुन्दा मृचौमृस्त कर यह खुब पसन्दकम्स। था। उसकी पाचनशकि 1 दिया । उसके राज्य: १६ मुज्य मूणे है १ भी पडी अच्छा थी । उसे फणीश भी र्शाक था । ३ काबुल, २ लाहौर, ३ मुत्तत्तत्न, ४ सिष, मृनुडाणा उसने अनेक प्रकाडके पश्तोंके पेड दृस्मदृहैंकै पैरों ६ मालवा, ७ अजमेर ८ दिशो' 8 ३३३३३३३ १० से र्मगवाकर डिन्दुस्ताजमें लगवाये । उसे सुगन्धि ५ इलाहाबाद. ११ अयोध्या, १२ स्मधहाशुदृरे ज्या!! से नतुन प्रेम था । किसी किसी अवसर पर उसने ३ १४वरार, १३। बानदेश्च और १६ डाहभदल्यार्द थे । सुस्त; के व्यवहार भी किये 1 ' (उडीसाओर कान्बीरवादमैं हुए) सन् १९1८९६हँ०मैं अपुराकृज़ख ने अकबर की राजनीतिक वर्णन अकारकै राज्यकै बारह हो ये ओरउनर्में १०५ किया है है धहफट्सरु है. कि "सोर्गोंकौ चारुम्बाख 'खरकाराघेप उनसे ९ करोड़ रुपयैयी अत्मदगी सुधारना, खेतोकौ तो करना, सेना तथा थी । षहीं धीरै-धीरेंधढ़ते-पड़ते १प्त मृरोद्भ रुपये राजाके अनेक यंर्गोंकौ उतम ग्यवरुधा काना, तकहीं गमी। पीछे यह डाषिस्वै आँमृमृ हैजा उपर्युक्त कर्ण काने ममय लंणोंकौ प्रसन्न रखना, क्रगेड़सेआगे नचा पट्ट सकी । प्रत्येक ६३३ एक