पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२०

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अकबर

भी 1 दृहोन्ना इसके विरुद्ध ये । थे र्ताग चाहते थे कि अकार उन्दीकै आदेशानुसार चले । परन्तु अकबर धार्मिक विना उदासीन था ] यत् गूसरेंकै अधीन रहकर काम करना पंसद नहा करता था । इसी सिये उणेमार्णोसे उसकी कभी शानी ग थी । यही कारण था कि प्रजा भी उले- माओकौ अच्छी नड्सरीसै नहीं देखनी यंट्टे । दनकां झूठा धमंणा, अधूरी विद्या और सस्काहुं। णीके लिये उनके घृणिभ प्रयत्न आदिक कांच जनता उनकी मिली उडाने लगी ओर करै डा' इनकी शिकायतें बादशाह तक पहूँर्वी । 'सदके साथ सागनतत्मा व्यवशब्ध बासा अफब्ररफू। सिबांदा उन्हें पसन्द न था । पच्चन्तु ऐसे भीका षरुअपुद्वाफबत्त वादश्चाहको मदद दिया क्रप्या था । धपुरयफजत्तकौ इच्छाहुदैकिसंसाषड्डोंके सभस धर्मबि प्रधान त्तस्वीकी छान-यीन की जाय । उसने अफषरर्ता अपने बिचारोंसे अमन क्रिया । यह कह चुके हैं फिअत्रुलफज्ञल मर्व गाढा पिदृश्च था । उलेमा घर्मडी र्थार आरुभ-प्रशर्वसक त्रुग्रं । जागै कोई भी प्रकांड पंडित न था । जा वान वे न समझते उन्हें वे -छिपा रखते । व्रत्रुतफजत्त भूने डानश विरोधी था । इसलिये डानुलंफुज्ज ने सोचा कि बादशाह सामने खुले दावाम्म' इन उशेमर्शसे व्रकै-बित्तकै किया जाय ताकि उनके अधूरे शश्चका पता सबको लग जाय । अघकाट्वेर्का

यह विचार पसंद आया ओर उसने हुकम दिया : कि सय क्योंका बिचार खुले दस्वारप्रे मेरें रहूँश्याने हुँ हो । स्पष्ट में अफधाज्ञे फ्लाहपूर सीक्रगेमे एक हुँ मंदिर बनवाया जिसे यह 'दृधादतसांग' कहता ;

था । यहीं वह सव घमोंके जानकार लंरर्गोंर्का एफत्रिरा कस्ता था और यहीं पदृत्त-मुदाएसा दुआ करता था 1 हर गृहस्पतिवांरकों ब्रदुघा रेवे दाद- विवाद दुआ करते थे । इनमें जिस विद्वानका भाषण विशेष महत्वपृर्ण होता था उसे बादशाह की ओर से बनाम मिलता था । इन वाद-विवादों का यह असर हुआ कि अकबर सुघो-पंश्रर्कच्चा छोड कर शिथायंथका कायल हो गया । उलेमा सुवो- पंथके अनुयायी होंनेकी घजहसे वे शियर-पंथियों को नाना प्रकार:-: कष्ट दिया करते थे । अकबर यह सोचने लगा कि इन उलेमार्थोंकौ परास्त कर इनका अधिकार स्वयं अपने हाधोंमै लेना चाहिये छोर स्वयं धर्यगुरुकापव्र सुशोभित करना चाहिये । यहीं विचार उसने सभाकै सम्मुखउषस्पित फिरा अकबर: जानताथा कि उतेमामीपै मतभेद है । इस- लिये उसने निर्णय किया कि धिन प्रश्नों पा' उसे

ज्ञानकौश ( अ ) १ ३'

गोरी "

अकबर

३ माओंमैं प्नत्तभेव्र हो उनका निर्णय यादशादृ में । मृ उलेमा त्रादशाहफे नौका' थे । इसलिये उन्हें ' रूस्वाच्चा होकर इस ट्टूक्यको मानना पड़। । इतना होनेपर 'धार्मिक अधिकार धीरे-धीरे त्रादशाहझे हाथोंमैं आगयेर्थश्य उलेमाश्रीफी पराजय हुई । अक्वदृप्रे उलेभार्षोकै समापनिओक्व स्थान विचार- षतिफौ बोभीसे हटा दिया । अव हाफ क्स्डग्य धर्ममे उहँम्माओका स्थान भहत्वपृएरें था । पैगंवा । युदृम्भन्के फर्मानोंका कड़दारैकै साथ पालन फा: वे । जुढमीराटूशाहीर्काबदुन कुछकाधुमैंरत सल्ले थे । दूत तरह उहोंप्रदृओकौ अमिदृकानंच्युनं कर बुझने पर अत्रुखफव्रलनेर्यापिनफिग्रा किं 'अकार व्रल्यहहाँ इमाम हैं । संप्ताक्यानें भलारैकै लिये एँप्रवरुनेही इस अवनश्यर्का प्रसंग क्रियाएँ ।" इस र्धापणासे मार्का नादृन्तुष दुआ । आयाकौ यह धान्य: था होने लगी कि नाम्भम्प मुभि र्थार प्तत्मान्य नीनिफे नबंयेकौ चऱवनीमे जो घृनै छुन जायें है। तो मन्द्र हैं ओ? वाकी तो झूठ मैं । इलाम धर्यमै उसकी अशा दीती होने लगी ओर यह वृव्ररै धर्मीकौ जानकारी रानिल काने लगा है आन्मस्का जन्मर्दतत्र' और उसका मूत प्रगृदृतिमैं हुँ लूम होना हंसे युक्तिसंगत ज्युन पदृगृ । सूर्य द्दे पूरा अधिका पदंमात्माकू। दृडश ॰मानहुं1मैं । हिचकिचाहट न मलम हुए । डागा धमकी क्या , भीवइकृछ झुका । उमकों जानकारी ब्दासिल क्रानेके लिये उसने गोआसे कुछ पादरियोंर्का अपने 'माँ बुत्तस्या र्थाज्व' उनसे थाएगिखकौ जान फारी हासिल की । उसने र्धाषणा की कि रात्यमैं जिसकी द्रब्धरे हो यह देसाई धर्षक्ता अध्ययन करें आर खुलेआम उसका पालन करें' है पान्तु स्वयं उग्नने ईकाई धर्मकी 'रीका ग्रहण न की । मय धबोंके अच्छे-अच्छे नंर्योंका संग्रह का , अश्वनी एक नया धर्म स्थापित किया । उसने । उसका नाम 'दीन इलाही' म्पमा और पाहू स्वय

उस धर्मका पैगम्बर उना । यपृष्टिका चमझार

द्देम्बक्रर _ सृष्टिकर्ता पणअंबेन्थज्जक्रा जो झान प्राप्त हँ। सब्ला। ते...उसौकै आधार पर यद्द घर्म वना ओर ८ इसमें सव प्रसिद्ध नाक अच्छे-अच्छे नन्दीका समावेश विजा गया। इस प्रकार अकावंने । द्दस्तग्म हूँर्म छोड़ दिया । उसने न्म्बात्रनुके मुसल- ५ मानी हुंगहार नन्द करा दिये । उसने अनेक दृ महूँजिद तुड़हुंग कर वहाँ पोठेपैकै अस्तक्खबनवाये ८ आर जातीय तथा धर्मभेढ़ र्ताढ़नेफा प्रथस्त्र । हिंग । उसकी इच्चछा थी वि: सोग उसे ईश्वरीय । ९1५1 समझकर उश्वका भजन कों । द्भव्रदैदृ सीक