पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२१४

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शह देकर हरिपन्त तातियाँ को एक प्रकार के उलझन मे ही डाल दिया और यह देखने लगा की वे इस उलझन को किस प्रकार सुलझाते है,अकेली फौज लेकर यदि उस पर जायें तो कुछ फौज इसी पर रहने के कारण नदी मे बाड़ आने पर काम करते न बनेगा और अंत मे अनाज तथा चारा पानी नही पहुँचेगा | यदि उस पार न जाएँ तो आधवनी शत्रुओ के सामने किस प्रकार ठहर सकता है|नर गुन्द का अनुभव तातियाँ को था ही| इन सब अड़चनो का विचार करके उन्होने अप्पा बलवंत राव को लिखा की आप मुहब्बत जंग को बाल बच्चो तथा समान के साथ आधवनि से निकल कर नदी मे बाढ आने के पहले ही शीघ्र ही इस पार ले आइये|अप्पा बलवंत रवने इसके अनुसार किया|परंतु अप्पा बलवंतरावको लौटने की जल्दी मे यह जानते हुए भी की थाने शत्रु लेने ही को है; आधवानी की तट बंदी तोड़ना,तोपो को नष्ट करना,फसल नष्ट करना,आदि बाते नही कर सके| वे शिग्रता से लौटे परंतु इतने पर भी तुंग भद्रा नदी मे सर तक पानी बढ़ ही गया था|इस पर पूरी सेना उतरने भी न पाई थी कि दू-तरफ़ा पानी बह निकाला|

 इस प्रकार आधवानी के कठिन प्रश्न से छुट्टी पाने पर दोनो सेनाएँ फिर से एकत्रित होकर कनक गिरी तक आई, वहाँ मुगल अली को विदा करके तादुबार जंग को साथ लेकर हरीपांत तातियाँ बआहदुर बिंदा को आए|इतने मे जुलाइ का महीना समाप्त हो गया| सहायता के लिए आई हुई सेना नदी के पर पहुचते ही टीपू ने किले पर झंडा फहरा दिया| परशुराम पंत को हरीपांत की आधवानी को छोड़ कर आने की योजना ठीक न जान पड़ी| एक पत्र मे उनके इस प्रकार उडूर है की आधावनी छोड़ कर चले जाना ठीक नही था किंतु भावी अवश्य ही होगी| परंतु तातियाँ की अड़चने क्या थी उपर बताई ही जा चुकी है|
  इस अवसर पर टीपू ने आधवानी किला लेलिया तथा जो टीपू का देश पहले निज़म के पास था वही फिर मिल गया| तत्पश्चात १०००ईस्वी मे वह अंग्रेज़ो के हाथ मे आ गया| अड़ना यह नगर एशिया माइनर के दक्षिण पूर्व किनारे पर स्थित है|

अदना प्रांत जो प्राचीन सिलीसिया के अंतर्गत था उसकी यह राजधानी है| यह उ०अ३७१तथा पूर्व दे०३५१९ मे स्थित है| यह एतिहासिक तथा सैनिक दृष्टि से बड़े महत्व का स्थान है|यहाँ खलीफा हरुरशीद के समय की बहुत सी पुरानी इमाराते तथा खंडहर विधयमान है|किसी समय मे रोमनो का महत्व पूर्ण सैनिक केंद्र था|यहाँ खनिज पदार्थ बहुत होते हैं|वहाँ की सड़को पर स्थान स्थान पर झरने बने हुए है जिनमे नदी से पानी लाया गया है|पंद्रह मेहराव का एक शानदार पुल है| जड़े मे यहाँ की आव्हवा उत्तम तथा स्वस्तकार है किंतु ग्रीष्म ऋतु बड़ी भीषण गर्मी पड़ती है| यहाँ की आधुनिक जनसंख्या लगभग ३१००० है| अदिकल यह अंबल निवासी जाती समूह का एक वर्ग है| कहा जाता है कि ये असल मे ब्राह्मण है परंतु भद्रकाली के मंदिर के पुजारी होने के कारण माँस मदिरा का भोग लगाकर सेवन करने से भ्रष्ट संभले जाने लगे|वे यशॉपित धारण करते है तथा खुद देवताओ के पुजारी का काम करते है |विवाह तथा पैट्र्क संपाति इत्यादि मे इनके नियम मक्त्यम लोगो के ही समान है| दस दिन तक सूतक तथा व्राधी मानते है|ये दस गायत्री मंत्र भी जपते है|इनकी स्त्रीय्न अड़ीयंमा कहलाती है|

 अड़िचंल्लुर -मद्रास प्रांत के तितरीवेली जिले के श्रीवेकेटम तालूके का एक गाँव है| यह श्रीवेकेटम से ३ मिल

और पलंकोटा से १५ मील की दूरी पर बसा हुआ है|नदी के दक्षिण तट पर यह स्थित है|१९६६ इश्वी तथा १६००इश्वी मे संशोधन विभाग के सूपरिनटेंडेंट रीय साहब ने जो खोदाई का काम किया था उससे पता चलता है की उस समय तक दक्षिण भारत मे यह सबसे प्राचीन तथा इतिहास पूर्व कालीन स्थान रहा होगा| यहाँ पर तमारपर्णी नदी के तट पर एक भाग मे बहुत से मरतको के अवशेष रखकर गाड़े हुए बर्तन मिलते है| इस कारण सरकार ने इस स्थान के आसपास की १०० एकड़ ज़मीन संशोधन के