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ज्ञानकोश

अकबरपुर गाँव--उत्तर अक्षां० २६२६ तथा पूर्व देशां० २३२ पर स्थित है। यह फज़ाबाद जिले के एक तल्लुक का गाँव है और अबन्ध रुहेलखन्ड रेलवे का स्टेशन है। जनसंख्या लगभग साढे सात हज़ार है। गाँव मे एक किलेका खंडहर है, जिसमें एक मसगजिद प्रेक्षरगीय है। नदी पर एक बडा पुल बँधा हुआ है । अकबर के शासनकाल में मुहसिनखाँ नामक एक व्यक्ति था , उसीने उपर्युक्त दोनो काम किये थे। यहाँ पर अनाज और खाल का अच्छा व्यापार चलता है (इ० ग० ५)।

     अकबराबाद - अंतर्वेदी का एक महाल। पहले यह एक सूबा माना जाता था । अकबराबाद की सुबेदारी मल्हारराव होलकर तथा जयापा सिंधिया के मार्फत दिल्ली के बादशाह तथा मराठों के बीच के इकरारनामों से मराठों को मिली। (रा० खं० ११-४)
शक १६७१ अकबराबाद आधि प्रांतो की सुबेदारी तथा फौज़दारी सिंधिया होलकर को दी गयी और बालाजी बाजीराव के साथ समझौता हुआ। (रा० खं० ६- २००-३००) आगे सिंद्दिया होलकर ने वह अपने प्रतिनिधि नियुक्त किये। १६७३ के ज्येष्ठ मे सिंधिया होलकर ने अकबरा बाद आदि दस महालों के अधिकारी दामोदर महादेव और पुरुषोतम महादेव को नियुक्त किया। (रा० ख० ६-२२३-३२३)।
 
 इसके बाद मराठी कागजों में इसके सम्बन्ध में निम्नलिखिनत उल्लेख है। महाराजा चेतसिंह ने फा० ब० ६ शके १७१ को दौलतगब सिंधिया को भेजे हुये पत्र मे इस प्रकार लिखा कि इन दिनों भी सरकारी फौज दतिया से अकबराबागद को गयी। (रा० खं० १०-४४२-३५६) शक १७१ के एक पत्र मे लिखा है कि अकबराबाद का किला राजश्री जगन्नाथराम के सुपुर्द किया गया (रा० खं० १०-४६४-३७०)।
 
 अकम्पन- एक राजर्षि हो गये है। इस बात का कहीं भी पता नहीं चलता कि ये किस समय तथा किस कुल मे उत्पन्न हुए। इन्हे हरि नामक परम पराक्रमी एक ही पुत्र था। एक युद्ध मे उसकी मृत्यु होगी यह जानकर इन्हे बहुत दुख हुआ और ये शोक करने लगे। इतने मे वहाँ नारद ऋषि प्रकट हुए और उन्होने 'मृत्यु अनिवार्य है' के विषय पर एक कथा सुनाकर इसका समाधान किया। (सार० द्रोणा० अ० ५२-५४)।
 २-- रावणगदूत। एक राक्षस। जनस्थान में रामचन्द्र ने खरादि राक्षसों का वध किया। यह व्रतान्त रावण को पहले इसीने और पीछे सूर्पनखा ने सुनाया था। (वा०रा०अर०स३१) राम-रावण युध्द मे इसने भाग लिया था और हनुमानजी के हाथ से इसकी मृत्यु हुई थी। (वा० रा० युध्द० स० ५६)
   अकरमासे-(महाराष्ट्रीय) अकबरमासे अर्थात् जो पूरे चारमाशे वजनके नही है; याने जिनमें किसी भी बातकी कमी हो। आजकल इस शब्द क प्रयोग हर तरह की जारज संतान के निर्देश में करते हैं। पहले धनी मराठे शादी के अवसर पर अपने दामाद को एक सुन्दर स्त्री नज़र किया करते थे। ऐसी स्त्री से उत्पन्न हुई संतति 'अकरमा से' कही जाती थी। यह जाति थाना जिमा तथा थोढ़ी पक्ष्चिम खानदेश में मिलती है। दूसरे ज़िलों में इनकी अलग जाति नहीं मिलती। ये ;कडू' हुए तथा औरस संताति के लिये 'गोड' संशा हुइ। इन्हे शिंदले, लेकावले आदि भी कहते हैं। पहले इनका दर्जा बिलकुल हीन था। इन्हें गुलामों की भाँति मेहनत करनी पडती थी। इनमें दो दर्जे हैं। पहला असल तथा दूसरा कमसल। ब्रहाण अथवा मराठा स्त्री की होनेवाली संतति असल तथा कम दरजे के पुरुष से उत्पन्न सन्तति कम असल कहलाती है। (मु० ग० थाना १३ पृ० १४२)। आजकल इनका व्यवसाय दूकानदारी, खेती, बदईगीरी, लोहारी आदि है। ये लोग मराठी बोलते हैं, और साफ-सुथरे रहते हैं; पर स्वभावतः आलसी और शाैकीन होते हैं। ये लोग मदिग और  मांस का सेवन करते है। इनका पहनावा मराठी ढ़गका होता हैं।ये लोग स्मार्त अथवा भागवत पन्थी होते हैं और ब्राहाम्ण उपाध्याऔ कों पूज्य मानते हैं। ये व्रतों और उपासनाऔं का पालन करते हैं। जाति की पंचायत भ्फगडों का निर्णय करती है। सामर्पात्तिक ध्प्टि से इनकी हालत गिरी हुई है। लडकों को शिक्षा नही दी जाती। चिधवा-विवाह हो सकता है। मृत व्यक्तियों को जलाते अथवा गाडते हैं।(अधर्म सन्तति देखिये)
  अकराणि(किला)-बम्बई इलाका। पश्चिम खानदेश तलोदे ताल्लुके के अकगणि पर गने में एक किला है।(ब०ग० १२० गवर्नमेन्ट लिस्ट आक सिविल होट स १८६२)
   अकराणि(परगना)- यह परगना पश्चिम खानदेश मध्य ताप्ती(तापी) और नर्मदा नदियों के बीच में सतपुरा पर्वत का पठार प्रदेश है। इसके उत्तर में नर्मदा नदी, पूर्व में बडव्बानी राज्य

और तुग्णामाल ,दक्षिण में सुलातानपुर और कुकुग्मुएड