पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२५४

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भारत राजनैतिक क्षेत्र श्रधिकलेें श्रधिक जो सम्मान किसी भी व्य त्किको प्राप्त हो सकता है वह प्राप्त हुआ। कांग्रेसके समापतित्व सकते पढ को इन्होंने विभूषित किया। इनको राजनैतिक क्षेत्र मैं कार्यकरनेसे विशेष प्रेम था, और इसी कारण से थिथॉसोंफिकल कन्वेन्शन (Theosophical Convention) चार साल तक कांग्रेसके साथ हीं साथ होता रहा (१६१६-१७,-१९,-१६)। १९२० ई० से राजनैतिक क्षेत्रसे इनका मान कुछ घट सा गया था क्योंकि भहात्मा गांधी द्वारा चलाये हुए असहयोग आन्दोलन यह पूर्ण रूपसे सहमत नहीं थी ओर न इसमें पूर्ण रूपसे इन्होंने भाग ही लिया। किन्तु इससे यह नहीं कहा जा सकता कि इनके देश-प्रेम अथवा सैवा भावमें तनिक भी त्रुटि आगई थी । नैशनल कन्वेन्शन और होमरूल आन्दोलनका कुल श्रेय़ इ न्ही को है। इन्होंने लिवरल फेडरेशन (Liberal Federation) की भी अनेक सभाओमें भाग लिया किन्तु 'होम रूल’ ही इनका मुक्य ध्येय रहा निष्पक्षता ही इनका प्रधान गुण हैं। सरकार द्वारा देशपर अत्याचार अथवा अनुचित व्यवहार देखकर भभक उठती थी तो जमेंनताकी याँ त्रुटियाँ पर भी सदा ध्यान रखती थी और उसके विरूद्ध कहने में नहीं चूकती थी। सन् १६२८ ई० मैं जब भारतमें सर साइमनके प्रधानत्वमें से रुटेचुअरी कमीशन(Statutory Commission) ने पदार्पण किया तो इस ८१ वर्ष की एकबार फिरसे नवीन स्फूर्तिका सञ्चार वुद्धा में होगया और भारतीय दलोंमें सम्मिलित होकर इसके बहिषकारके लिये अनेक प्रतिभापृर्ण श्रोजस्वी भाषण दिये । भारतमें थिथॉसोंफिकल सोसाइटी की जन्मदाता यहीं थी। अपने सतत परिश्रम,असीम प्रतिभा तथा योग्यताके, कारण भारतके २०वीं शताब्दीके इतिहासमें इनका नाम विशेष प्रेम था और भारतकी पवित्र भूसिमें हीं ८६ वर्षकी अवस्तामें २०वीं सितम्बर १६३३ ई० को इन्होंने प्राण छोड़े । शौक देशके कोने कौनेमें मनाय़ा गया, और इनको वह सम्मान दिया गया जो बहुत कम भारत वासीयोको भी प्राप्त होता हैं। अनीस-उर्दूके प्रतिभाशाली कविः मीर बबर अलीका यह उपनाम था और इसी नाम से प्रसिद्ध भी थे । इनके पिताका नाम मुस्तहसन खलीक था । यह लखनऊके निवासी थे । इनका इसका ध्यान दरीद्र और रोगियोंकी सेवाकी ओर ही अधिक श्राकृष्ठ हुआ था। उस साल सिस्बे के अस्पताल और गिरजा घरमें इसने यडे परिश्रम से काम किया था। आगे चलकर पूर्वीय लन्दन की धनहीन युवतियों के लिये भी इसकी निरन्तर सेवा विषेश प्रसंशनिय हैं। फेबियन सोसाइटी(Fabian Society) से भी इसका धनिष्ठ सम्बन्ध था। उसकी स्पष्टवादिता तथा सचाईके कारण उसके बहुत से शत्रु होगये थे। इसके जीवन का प्रारम्भिक भाग(अर्थात १८६१ ई० तक) अपने आत्माकी स्वतन्त्रता तथा ज्ञानप्राप्त करने में ही इसने व्यतीत किया था ।