पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२६६

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भोजन निश्रितकरने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:- (१) जो श्रम्न ग्रहण किया जाए उसमें उपरोक्त पाँच प्रकार तथा विटामीन का समावेश योग्य प्रमाण में होना आवश्यक है। साथ ही साथ शरीर मेें काफी प्रमाण में क्षत्रमी जाना चाहिए। (२) जिस देश में मनुष्य रहता हो वहाँ को आबवहा को ध्यान में रखकर ही भोजन नि्रधारित करना चाहिए । श्रवस्था,उध्योग ,मानसिक तथा शारीरिक परिश्रम को ध्यान में रखते हुए ही भोजन निश्रित करना चाहिए । (३) कोई पदार्थ चाहे कितना हो लाभदायक क्यों न हो किन्तु रुचि श्रौर पाचन शक्ती का भी ध्यान आवश्यक है। वैज्ञानिकों का मंत है कि प्रतिदिन साधारण तथा मनुष्य श्र्वांसोच्छासके समय २५० लेकर ग्राम तक कर्व ,मुख्यतः,कर्व-दि्व प्रागिध के रूप में बाहर फैंकता है। मूत्र में यूरिया नामक क्षार होता है। मूत्र-त्याग द्वारा २५ से २= प्राम तक तत्र जिस प्रमाग में शरीर के बाहर निकलते रहते है उसके अनुसार ही श्रन्न द्वारा इनको शरीर में प्रवेश भी करना आवश्यक बताया है:- प्रथमः-नत्रयुक्त पदार्थ

     स्निग्ध पदार्थ
    पिष्ठ पदार्थ

दि्वतीयः- नत्रयुक्त पदार्थ

    स्निग्ध पदार्थ
    पिष्ठ पदार्थ

श्रहार में भिन्न भिन्न पदार्थों के गुरुधर्म का विचार करना भी आवश्यक है। इसका पूरा पूरा व्यौरा देना तो यहांँ श्रसम्मव है किन्तु मुख्य मुख्य पदार्थों पर कुछ प्रकाश डाला गया है। भारत ऐसे उष्ण प्रदान देश में दूध को उत्तमान कहा गया है। छोटे वस्त्रों के लिए इससे बडकर दूसरा क्षन्न कोई कदाचित ही हो किन्तू बडे मनुष्यों को भी यथेष्ट प्रमाग में सेवन करने से उत्तम स्वास्थयतथा वल प्राप्त हो सकता है। हाँ दूध में लोह का अंश बहुत कम होने के कारण शरीर हलका रहता है किन्तु लिसीथीन नामक पदार्थ होने से बुद्धी तथा मजा के लिये यह विशेष गुरुकारी होता है। जहाँ दुधमें अनेक गुए हैं वहाँ हो इसमें दोष भी हैं जो तनिक सी श्रसावधानी होने पर भंयकर परिमण करते है। श्रस्वच्छुता का डसपर बहुत जल्दी प्रभाव पडता है। रोग उत्पन्न करने वाले तन्तु इसमें बडी शीघ्रता से उत्पन्न हो जाते हैं। यह शीघ्र ही चिगड भी जाता है। खाघ पदार्थों में श्रएडेका भी आजकल विशेष स्थान हो रहा है। मुर्गी,बत्तक तथा श्रन्य पक्षियों को श्रराडे व्यवहार में लाये जाते हैं। श्रगडे में सफेदी बहुत होता है। यह बडा पौष्टिक होता है। इसकी जर्दी भी बडे लाभ की वस्तु है। किन्तु उसको बहुत देर तक उवालने से न्यूकीन नामक पदार्थ कठिन वासे पचता है। इसी लिए लाम की द्रष्टि से अथवा क्षोत्रधोपखार में कखे श्रराडे खाना हो उचित है। मांस खाने की प्रथा थोडी बहुत प्राय हरेक पशु अथवा पक्षि का माँस खाने में व्यवहार नहीं किया जाता। बहुत से पशुश्राका मांस तो हनि के भय से व्यवहार में नहीं लाते किन्तु बहुत से पशुश्रों का मांस केवल प्रथा न होने ही से नहीं खाते । बहुत सी जातियों में इसको धर्म का श्रड मानकर निषेध किया है। मित्र मित्र पशुश्रों को मासमें मित्र मित्र गुण धर्म होते हैं किन्तु पचता भी कठिनता से है।इसमें चर्वीका अंश बहुत होता है।