पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/५५

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((स ७६ मे चड पूजा। स ७७ मे कपिला पूजा। स ७८ मे पवित्राधिवासन विधि। यह कुल धर्म अभी तक प्रसिद्ध है। स ७९मे पवित्रारोपन विधि। स ८०मे दमणकारोहन विधि। स ८१ मे समय दीक्षा। स ८२मे सन्स्कार दीक्षा। ये सब विशय मन्त्र शास्त्रके है। स ८३मे निर्वाण दीक्षा विधि। स ८४मे निव्रति कला शोधन।स ८५मे प्रतिश्ठा कला स्न्शोधन। स ८६मे विद्या सन्शोधन विधि। स ८७मे शान्ति शोधन विधि।स ८८मे निर्वाण दीक्षा शेश विधि वर्णन। ८९मे एक तत्व दीक्षा विधि। स ९०मे अभिशेकादि। स ९१-९२मे प्रतिश्ठादि विधि। तथा अभिशेकसे सन्क्षिप्त देवता पुजन। स ९३मे वास्तु पुजा। स ९४मे शिला विन्यास। स ९५मे प्रतिश्ठाकालकी सामग्रि आदि विधि। स ९६मे प्रतिश्ठाविधि कि आश्वासन विधि। ९७मे शिव प्रतिश्ठा विधि। स ९८मे गौरी प्रतिश्ठा विधि। स ९९मे सुर्य प्रतिश्ठा। स १००मे द्वार प्रतिश्ठा विधि। अध्याय १०१मे प्रासाद प्रतिश्ठा विधि। अ १०२मे ध्वजारोहन विधि। अ १०३मे जिर्णोद्धार विधि। अ १०४मे प्रासाद लक्षण। अ १०५मे ग्रहादिवास्तु विचार। अ १०६मे नगरादिकवास्तु कथन। )))

अ० ७६ मैं चंड पूजा । अ० ७७ में कपिलब्ब पूजा हुँ आ। ७८ मैं पधिवाधिख्यान विधि । यज्ञ त्रुदृरेंहूँमृष्ण ग्रभीतफ असिदहै । अ० ७९ मैं पबित्राक्वापण विधि । अथ ८० में ट्यजकारोंदृण विधि : 31८ ८१ मैं समय दीक्षा । आ ८२ में संस्कार दीक्षा । थे सब्र बिषय मन्त्र शाब्रके है । अ० ८३ मैं निर्माण दीक्षा विधि । अथ ८४ मैं निधुचि कला शोधन]अ० द्वा-ए मैं प्रतिज्ञा फला संशोधन । अ० ८६ मं विद्या संशोधन विधि । अ० ८७ 3३ र्शाति गोधन विधि! ३1०८८ में नित्य दीक्षा शेष विधि वर्तन । अल ८९ मैं एकनत्व दीक्षा विधि 1 अ" ९०मै अबिडापैप्लाहि । अ० स्ताटइ में प्रतिष्टाबि विधि । तथा अभिपेफसे संक्षिप्त देवता पूजन । अ० ९३ में वास्तु पूजा । अग्न ९४ में शिला विन्यास । अ० ९५। येमाँतेष्ठाफालकौ सत्मभी आदि विधि। अ० ९६मै प्रतिष्ठा पिभिकौ अधिघासन बिधि। आ ९७ ये शिबण्डितिष्टा विधि: आ ९८ में गोभी प्रतिज्ञा विधि। ३1०९९ये मृर्यप्रतिष्टद्दा अ० १०० मैं द्वार प्रतिष्टा बिधि । अध्याय १०१ में प्रासाद प्रतिज्ञा विधि । अ॰ १०२ में ध्वजारोंपण तिथि। अ० १०३ में जीसोंद्धार विधि । ३४० १०४३।प्रासादतत्तण । अ० १०५1 पैं गृहादिचान्तु विचार । ३९० १०६ मैं नगराद्विफचास्तु कथना भूहोंख ज्ञाति-ब' १०७ प्राचीन भूगोल ष्टान बोधक हैं । इसके स्यायंभूवसर्गमैं स्वयंभूभनुके वंश का संलिप्त उल्लेख है 1 3४० १०८ में भुवन कोश ।इस बनके सान द्वीप हैं और उनके चारो ओर द्धृ: समुद्रोका प्रेस है । उन सप्तवीपीएँभाम इस प्रकार हैं----, अक्ष, शस्लालि, कुश, कोच, शल्य औरपुष्कश है जा: समुदोफे मदम-खारा समुद्धू ऊँम्नका समुव्र, मशका सब, ओं का समुद्र, दही का समुद्र, शीश समुद्र, ओरभीठे पानीका समुद्र । अ० १०१ में तीर्थ भहान्म । अ० ११० में गंगा ठगसांम्य । आ १११ मैं प्रयाग महारव्य ।अ० ११२ में थश्याणसो भदारन्य । आ ११३ में त्तर्मदस्ना मादात्मा । अ० ११४।११६में गया माहात्स्य ।पुराणका "पकी मुनि पुहाँभ कुशाग्र हस्तद्भु' यह रुद्र कोक इस स्थान परहै। आ ११७भै आद क्या । औ" ११८ मैं भास्तचर्षका वर्णन । इस भास्तचषमैंरंद्र दीप, ९ल्लेरु, क्षाम्रघर्ण, शभस्ति, भूसा द्वीप, सौम्य गाधि; पारुण, ऐसे आठ अंड हैं! अ' ११९मैं मदाहींपादिवर्णन । १1० १२० मैं भुवन कोश वर्णन; पल्लज्योसिधमिथित ज्योतिष- शाखा ओर वैद्यक है

(८० १२१-१४शि)अ० १२१ मैं ज्योतिषशास्रा ज्ञा० १२२ मैं काल गणना । अथ १२३ में अज- यार्णबीय मथर अनेक गोभीके तम देम पलने है । उदय, शनि-, कम, आत राहु' ही रसके बय विषय अ", है अय १२४ में युहजयलंजीय लेनि: रमा-म यन । अ० १२प में अजय" यन्नीयनाना चक यन । इसके आते वर्णन भाग मययक, है । अन्य १२६ अर नक्षत्र निर्णय: अ० उग्र नाना प्रकार: वयन बनि दिया म हैं है कह अ वित के अथ औम म काट.; 1 अथ १२९ म अध- काहा । अख १३० मैं औन्द्रलदि कथन : अय स्व१ में धान नथ । अव प्याज: सेवा-: । अथ १व्य मैं नाना-मवर्षन 1 गम के प्राणीका आ-यल के आपसे स्वरुप बनि: उवा-य-पयक आमि पडा इजा' मनुष्य रहु-न ऊचा, साल. त, प मध्यम हैं । यह गोरा आर वित्त प्राकृति-का बने हे, मच-मश, गुणी, शति शम उबर (रिन, की । इसी उसे अल अकड बगल जानना चाहिये है इसी तर अकी दशाओं, (लपककर वर्णन किया., है अथ १३४ में सेला-मयय यश संबशाम है अव १३४ में संयाम विजय विद्या: वय १३६ में नक्षत्र चब । अव . में मपरी विद्या कथन ( मीर ) । अथ १०८ है मई शावक जू: कर्ष । अ: १३९में सप्त सं-र-क्रि, नाम है बहे १४० में धरम योग है उम कुछ यनसती१ययु नाम भी में । अष्टि १४१ में लर पू-ताक मान. यन-पति तय-मत-कालम हो । संत व्यंतेधिधिन वद-कका बरम हैं । संल (मरीजन ) अमर ( अक्ष ) वाश अर्विखा ( आमलक, ) (मिरे) यब मिर्श जिसे ( षिप्पली ) बदलने ( सौप.) ( जज ) से ( यन्ति ) सोठ ( मह ) देय ( गुलब ) यव ( अर्श, ) नीम ( नियक ) तो ( बस ) शनाबगी ( शकल, ) बनाम ( संचय ) ( संस्कृकारक ) निवास ( य-कारी ) गोल ( गोचर ) बेल ( एब) पुनम ( गो-बा) परब कांजी काल. लेक ( रब; ) माका (रिको जम श्चिपापडा ( परम-- ) घना ( धन्य.. ) अंत (बक) बजा समझ (शद.) अजाब. उबाल)" (ते ) सया (जमाल) सिद्ध", करु यही राई इन्यारिका वर्णन किया है है अय १४२ में संबोयधि प्रकरण वह अथ किसग्रकद देखने चाहिए इसका स्थिर है अ:१४३नि१४४ म कुयकापूचन्द्र । अ० १४ए में मजिनी