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सभ्यता का दर्शन

पाठक: अब तो आपको सभ्यता[१] की भी बात करनी होगी। आपके हिसाबसे तो यह सभ्यता बिगाड़ करनेवाली है।

संपादक: मेरे हिसाबसे ही नहीं, बल्कि अंग्रेज लेखकोंके हिसाबसे भी यह सभ्यता बिगाड़ करनेवाली है। उसके बारेमें बहुत किताबें लिखी गई हैं। वहाँ इस सभ्यताके खिलाफ़ मंडल भी क़ायम हो रहे हैं। एक लेखकने 'सभ्यता, उसके कारण और उसकी दवा' नामकी किताब लिखी है। उसमें उसने यह साबित किया है कि यह सभ्यता एक तरहका रोग है।

पाठक: यह सब हम क्यों नहीं जानते?

संपादक: इसका कारण तो साफ है।

कोई भी आदमी अपने खिलाफ़ जानेवाली बात करे ऐसा शायद ही होता है। आजकी सभ्यताके मोहमें फंसे हुए लोग उसके खिलाफ़ नहीं लिखेंगे, उलटे उसको सहारा मिले ऐसी ही बातें और दलीलें ढूंढ़ निकालेंगे। यह वे जान-बूझकर करते हैं ऐसा भी नहीं है। वे जो लिखते हैं उसे खुद सच मानते हैं। नींदमें आदमी जो सपना देखता है, उसे वह सही मानता है। जब उसकी नींद खुलती है तभी उसे अपनी गलती मालूम होती है। ऐसी ही दशा सभ्यताके मोहमें फँसे हुए आदमीकी होती है। हम जो बातें पढ़ते हैं वे सभ्यताकी हिमायत करनेवालोंकी लिखी बातें होती हैं। उनमें बहुत होशियार और भले आदमी हैं। उनके लेखोंसे हम चौंधिया जाते हैं। यो एकके बाद दूसरा आदमी उसमें फँसता जाता है।

पाठक: यह बात आपने ठीक कही। अब आपने जो कुछ पढ़ा और सोचा है, उसका ख़याल मुझे दीजिये।

संपादक: पहले तो हम यह सोचें कि सभ्यता किस हालतका नाम है। इस सभ्यताकी सही पहचान तो यह है कि लोग बाहरी (दुनिया) की खोजोंमें

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  1. तहजीब।