पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/१००

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हिन्दू धर्म
 

रहेगा। द्वैतवादियों के मत के अनुसार, यह जीव-या यथार्य मनुष्य—अत्यन्त सूक्ष्म, अणु है। यहाँ तक हम देखते हैं कि मनुष्य ऐसा व्यक्ति है, जिसका प्रथम तो स्थूल शरीर है जो अति शीघ्र नष्ट हो जाता है और तत्पश्चात् उसका सूक्ष्म शरीर है जो युगयुगान्तरों तक बना रहता है और तत्पश्चात् जीव है। वेदान्त मत के अनुसार यह जीव ठीक वैसा ही अनन्त है जैसा कि ईश्वर। प्रकृति भी अनन्त है, पर वह परिवर्तनशील अनन्त सत्ता है। प्रकृति के तस्व—प्राण और आकाश—अनन्त हैं, पर उनका चिरकाल विभिन्न रूपों में परिवर्तन होता रहता है; पर जीव आकाश से या प्राण से सृष्ट नहीं हुआ है। वह तो भौतिक पदार्थ नहीं है और इसी कारण सब काल रहने वाला है। वह प्राण और आकाश के किसी मिश्रण का परिणाम नहीं है; और जो मिश्रण का परिणाम नहीं है वह कभी नष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि कारण-स्वरूप को पुनः प्राप्त होना ही नाश है। स्थूल शरीर आकाश और प्राण से बनी हुई समिश्रित वस्तु है, अतः वह विघटित, नष्ट हो जायगी। सूक्ष्म शरीर भी दीर्घ काल के बाद नष्ट हो जायगा, पर जीव तो अमिश्र ताव है और इसीलिये वह कभी नष्ट नहीं होगा। उसके कभी उत्पन्न न होने का भी यही कारण है। किसी अमिश्र तस्व की उत्पत्ति कभी नहीं हो सकती। वही युक्ति यहाँ भी लागू है; जो मित्र वस्तु है उसी की उत्पत्ति होती है। सम्पूर्ण प्रकृति, जिसमें लाखों और करोड़ों आत्माएं हैं ईश्वर की इच्छा के वशवर्ती है। ईश्वर

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