पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/११४

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हिन्दू धर्म
 

भंग हो जायगा कि आप जन्म लेते हैं और मरते हैं और वैसे ही वह दूसरा स्वप्न भी, कि यह विश्व अस्तित्व में है, भंग हो जायगा। यही वस्तु जो अभी हमें विश्व दीख रही है, ईश्वर (परब्रह्म) दिखाई देगी और वही ईश्वर जो इतने दीर्घकाल तक बाह्य वस्तु प्रतीत होता था, वह अब अन्तःस्थ, अपनी स्वयं आत्मा ही प्रतीत होगा।

 

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