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हिन्दू धर्म
 

महान् आध्यात्मिक विभूतियाँ उन्हीं पंथों में उत्पन्न हुई हैं, जिनके पास बहुत समृद्ध पौराणिक कथा और कर्मविधियों का भाण्डार रहा है। वे पंथ जो ईश्वर की पूजा, बिना मूर्ति और बिना विधि के ही, करने का प्रयत्न करते हैं, वे, धर्म में जो कुछ भी सौन्दर्य और माधुरी पाई जाती है उन सब को निर्दयता पूर्वक कुचल डालते हैं। उनका धर्म अधिक से अधिक धर्मान्धता, एक शुष्क, रसहीन वस्तु रही है। संसार का इतिहास इस घटना का सजीव साक्षी है। अतः इन विधियों और पौराणिक कथाओं का तिरस्कार मत करो। लोग इसे रखे रहें। जिन्हें इसकी इच्छा है, उन्हें इसे रखने दो। उस पर अनुचित तिरस्कारयुक्त हँसी का भाव भी मत प्रकट करो, और यह न कहो "कि वे मूर्ख हैं, उनके पास इन बातों को रहने दें।" ऐसा नहीं है। बड़े बड़े महात्मा जिनका दर्शन मैंने अपने जीवन में किया है, जिनकी आध्यात्मिक प्रगति अत्यन्त अद्भुत थी, वे इन्हीं कर्म और विधियों की शिक्षा से उस उच्चावस्था को प्राप्त हुये हैं। मैं अपने को उनके चरणों के समीप बैठने के योग्य नहीं पाता; फिर 'मैं', 'उनकी' समालोचना करूँ! मैं यह कैसे जानें कि ये विचार मनुष्य के मन पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं। इनमें से किसको मैं ग्रहण करूँ और किसको त्याग दूँ? हम संसार की सभी वस्तुओं की बिना पर्याप्त कारण के ही टीका-टिप्पणी करने लग जाते है। लेग जिन पौराणिक कथाओं को चाहें, उन्हें वे रखें, उनकी स्फूर्तिदायक सुंदर शिक्षाओं को ग्रहण करें; क्योंकि यह सदा स्मरण

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