पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/४४

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हिन्दू धर्म
 

द्वैतवादी, एकेश्वरवादी सभी वहाँ वास करते हैं और एक साथ बिना द्वेषभाव के रहते हैं । ब्राह्मणों के मन्दिरों के दरवाजों पर जड़-वादियों को देवताओं के विरुद्ध और प्रत्यक्ष परमेश्वर के विरुद्ध भी प्रचार करने दिया गया। वे देश भर में यह उपदेश देते फिरे कि ईश्वर को मानना निरा अन्धविश्वास है, देव-देवता, वेद और धर्म आदि बातें निरा अन्धविश्वास है। पुरोहितों ने अपने स्वार्थ और लाभ के लिये वे गढ़ ली हैं। इस प्रकार प्रचार करने वाले उपदेशकों पर भी अत्याचार नहीं किया गया। तभी तो जहाँ कहीं श्रीबुद्ध देव पहुँचे, वहीं उन्होंने हिन्दुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली सभी वस्तुओं को मिट्टी में मिला देने का प्रयत्न किया । और बुद्ध देव ने तो बहुत वृद्ध होकर शरीर-त्याग किया। वही हाल जैनियों का था।वे तो ईश्वर के अस्तित्व की कल्पना की हँसी उड़ाते थे। उनका कहना यही था कि ईश्वर हो ही कैसे सकता है ? ईश्वर की कल्पना तो केवल अन्धविश्वास है। इसी प्रकार अनेकों अन्य उदाहरण दिये जा सकते हैं। इस्लाम धर्म की लहर भारत में प्रविष्ट होने के पूर्व धार्मिक अत्याचार का नाम भी नहीं सुना जाता था। विधर्मी विदेशियों द्वारा हिन्दुओं पर ही जब यह अत्याचार हुआ, तभी उन्होंने इसे प्रथम बार अनुभव किया। अभी भी यह बात सभी जानते हैं कि ईसाइयों के गिरजाघर बनाने में हिन्दुओं ने कितनी सहायता दी, और उन्हें सहायता देने के लिये कहाँ तक वे सदैव तत्पर रहते हैं। धर्म के नाम पर खूनखराबी कभी नहीं की गई। सनातन हिन्दू धर्म के अतिरिक्त

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