पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/४६

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हिन्दू धर्म

दो तीन बादशाह ने हजारों प्रचारकों की हत्या करवाई, परन्तु उसके बाद अन्त में बौद्धों का भाग्य चमका। एक बादशाह ने उन अत्याचारियों से बदला लेना चाहा, पर बौद्ध प्रचारकों ने इनकार कर दिया। इन सब घटनाओं के लिये हम उसी एक मंत्र के ऋणी हैं। इसीलिये मैं चाहता हूँ कि तुम इस मंत्र को याद रखो,-" जिसे इन्द्र, मित्र वरुण कहते हैं-वह सत्ता केवल एक ही है : ऋषि लोग उसे भिन्न भिन्न नामों से पुकारते हैं।"

सभी आधुनिक विद्वान चाहे जैसा कहें, पर यह कोई नहीं जानता कि यह मंत्र कब लिखा गया-कौन जाने वह ८००० वर्ष पूर्व लिखा गया हो या ९००० वर्ष पूर्व । इनमें से कोई भी धार्मिक विचार आधुनिक नहीं कहा जा सकता, पर यह आज भी उतना ही नवीन है, जितना कि वह लिखने के समय था। इतना ही नहीं, आज वह अधिक नवीन है; क्योंकि उस पुराने जमाने में मनुष्य समाज उतना सभ्य नहीं था, जितना सभ्य उसे हम आज समझते हैं। उस जमाने में वह अपने से थोडा भिन्न विचार रखनेवाले भाई का गला काटना नहीं सीखा था, उसने संसार को

खून में नहीं डुबाया था, वह अपने भाई के लिये राक्षस नहीं बना था। मानवता के नाम पर वह सारी मानव जाति का वध नहीं करता था। इसीलिये " एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति " ये शब्द बाज हमारे सामने अधिक नवीन दिखाई पड़ते हैं और ये शब्द महान, अर्थयुक्त, स्फूर्तिदायक, संजीवक होने के कारण जिस

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