पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/८६

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हिन्दू धर्म
 


घबड़ाओ मत, और न किसी दूसरे का अनुकरण ही करने की चेष्टा करो। अन्य आवश्यक बातों के साथ हमें यह बात भी सदा याद रखनी होगी कि दूसरे का अनुकरण करना सभ्यता या उन्नति का लक्षण नहीं है। मैं यदि स्वयमेव राजा की-सी पोशाक पहन लूँ तो क्या इतने ही से मैं राजा बन जाऊँगा? शेर की खाल ओढ़ कर गधा कभी शेर नहीं हो सकता। नीच, शक्तिहीन और डरपोक की तरह अनुकरण करना कभी उन्नति का कारण नहीं हो सकता। वैसा करना तो मनुष्य के अधःपात का लक्षण है। जब मनुष्य अपने आप पर घृणा करने लग जाता है, तब समझना चाहिये कि उस पर अन्तिम चोट बैठी है। जब वह अपने पूर्व-पुरुषों को मानने में लज्जित होता है, तो समझ लो कि उसका विनाश निकट है। यद्यपि मैं हिन्दू-जाति में एक नगण्य व्यक्ति हूँ, तथापि अपनी जाति और अपने पूर्व-पुरुषों के गौरव से अपना गौरव मानता हूँ। अपने को हिन्दू बताते हुए–हिन्दू कहकर अपना परिचय देते हुए–मुझे एक प्रकार का गर्व-सा होता है। मैं तुम लोगों का एक तुच्छ सेवक होने में अपना गौरव समझता हूँ। तुम लोग आर्य-ऋषियों के वंशधर हो–उन ऋषियों के, जिनकी महत्ता की तुलना नहीं हो सकती। एतद्देशवाशी होने का मुझे गर्व है। अतएव, आत्म-विश्वासी बनो। पूर्व-पुरुषों के नाम से अपने को लज्जित नहीं, गौरवान्वित समझो। याद रहे, किसी और का अनुकरण तो कदापि न करना। जब कभी तुम औरों के विचारों

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