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हिन्दू धर्म और उसका दर्शनशास्र
 

पर एक ऐसा केन्द्र नहीं मिला है, जो अन्य सभी केन्द्रों का नियमन करे। अतः शरीर-विज्ञान यह नहीं बता सकता कि इन सभी केन्द्रों में एकसूत्रता कहाँ से आती है, कहाँ पर ये केन्द्र एक होते हैं? मस्तिष्क में सब केन्द्र अग अलग हैं और वहाँ कोई ऐसा एक केन्द्र नहीं है जो अन्य केन्द्रों का नियमन करे; अतः जहाँ तक हिन्दू मनोविज्ञान-शास्त्र की गति है, इस विषय में उसका विरोध नहीं हुआ है। इस प्रकार की एकसूत्रता अवश्य होनी चाहिये, ऐसी एक सत्ता अवश्य रहनी चाहिये जिसमें सभी विभिन्न संवेदनायें प्रतिबिम्बित—केन्द्रित होंगी, जिससे ज्ञान पूर्ण रूप से निष्पन हो सकेगा। जब तक इस प्रकार की कोई वस्तु न हो, तब तक मैं तुम्हारे विषय में, किसी चित्र या अन्य वस्तु के सम्बन्ध में कोई कल्पना नहीं कर सकता। यदि एकसूत्रता लानेवाली वह वस्तु न हो तो हम केवल देखेंगे ही, फिर कुछ समय के बाद केवल श्वास ही लेंगे, फिर केवल सुनेंगे, आदि आदि, और जब मैं किसी मनुष्य को बोलते सुनूँगा, तब मैं उसे बिलकुल देखूगा नहीं, क्योंकि सभी केन्द्र अलग अलग हैं।

यह शरीर परमाणुओं से बना है, जिन्हें हम भौतिक पदार्थ कहते हैं और वह जड़ और अचेतन है। उसी प्रकार, जिसे वेदान्ती सूक्ष्म शरीर कहते हैं, वह भी जड़ और अचेतन है। उनके कहने के अनुसार वह जड़ परन्तु सूक्ष्म है, अत्यन्त सूक्ष्म परमाणुओं से बना है—इतने सूक्ष्म कि किसी भी सूक्ष्मदर्शक यंत्र से वे नहीं दीखते।

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