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पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/९८

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हिन्दू धर्म
 

फिर उसका क्या कार्य है? वह सूक्ष्म शक्तियों का आधार है। जैसा कि यह स्थूल शरीर स्थूल शक्तियों का आधार है वैसे ही सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म शक्तियों का आधार है, जिन्हें हम 'विचार' कहते हैं। यह विचारशक्ति विभिन्न रूपों में प्रकाशित होती रहती है। प्रथम तो शरीर है, जो स्थूल जड पदार्थ है और स्थूल शक्तिमय है। जड़ पदार्थ के बिना शक्ति नहीं रह सकती। उसके रहने के लिये जड़ पदार्थ चाहिये ही, इसीलिये स्थूलतर शक्तिया शरीर में काम करती हैं; और वे ही शक्तियाँ सूक्ष्मतर बन जाती हैं; वह शक्ति जो स्थूल रूप में काम कर रही है, वही सूक्ष्म रूम में कार्य करती है और तब विचार में परिणत हो जाती है। इनमें कोई भेद नहीं है, केवल इतना ही है कि एक उसी वस्तु का स्थूल और दूसरा सूक्ष्म स्वरूप है। इस सक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर में भी कोई पार्थक्य नहीं है। सूक्ष्म शरीर भी भौतिक है, केवल इतना ही कि वह अस्यन्त सूक्ष्म जड़ वस्तु है। जैसे यह स्थूल शरीर स्थूल शक्तियों के कार्य का साधन है, ठीक उसी तरह सूक्ष्म शक्तियों के कार्य का साधन यह सूक्ष्म शरीर है।

अब प्रश्न यह है कि ये सब शक्तियाँ कहाँ से आती हैं। वेदान्तदर्शन के अनुसार प्रकृति में दो सत्ताएँ है—एक आकाश कहलाती है—वह पदार्थ है, अत्यन्त सूक्ष्म है; और दूसरी प्राण कहलाती है—वह शक्ति है। जो कुछ भी हम देखते हैं, अनुभव करते हैं या सुनते हैं—जैसे वायु, पृथ्वी या और भी कुछ—वे सब

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