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[कबीर की साखी
 

 

संदर्भ―प्रभु भक्तो से ही अन्तःकरण की बात कहनी चाहिए।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं, कि संसार के माया में लिप्त प्राणियो से प्रेम पूर्वक वार्तालाप नही करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जो असीम परमात्मा की प्राप्ति में सन्नद्ध हैं ऐसे प्रभु-भक्तो से अपने अन्तःकरण की बात भी कह देनी चाहिए।

शब्दार्थ―हद के जीव सू=सांसारिक मनुष्य से बेहद=असीम, निस्सीम।

कबीर केवल राम की, तूँ जिति छाड़ ओट।
घण अहरणि विधि लोइ ज्यूँ, घणीं सहैं सिर चोट॥५१॥

सन्दर्भ―प्रभु=आश्रय से विमुक्त प्राणियो को नानाविध यातनाएँ सहनी पड़ती हैं।

भावार्थ—कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीवात्मा। तू राम का परमात्मा का आश्रय कभी मत छोड और यदि तू ब्रह्म को विस्मृत कर देगा तो जिस प्रकार घन और छेनी के बीच लोहे को अनेको चोटे सहनी पड़ती हैं उसी प्रकार तुझे भी जाना प्रकार की सासारिक यातनाए सहनी पड़ेगी। शब्दार्थ―अहरणि=छेनी।

कबीर केवल राम कहि, सुध गरीबी झालि।
कूड़ बड़ाई कूड़सी, भारी पड़सी काल्हि॥५२॥

सौंदर्भ―राम नाम को भुलाकर झूठे बडप्पन मे डूब जाने से जीव को बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव! तू राम नाम का स्मरण करते हुए अपनी गरीबी मे हो प्रसन्न रह। भवसागर मे डुवाने वाले मिथ्या सासारिक वैभवो मे यदि तू पड गया तो भविष्य मे तेरे ऊपर भारी विपित्त आवेगी और निश्चित रूप से तेरा पतन होगा।

शब्दार्थ―झाल्हि=झेलने। कूड=व्यर्थं के, मिथ्या।

काया मंजन क्या करै, कपड़ धोइम धोइ।
उजल हुआ न छूटिये, सुख नींदड़ीं न सोइ॥५३॥

सन्दर्भ―शरीर और कपडो की शुद्धता से हो आत्मा पवित्र नहीं होती। मन की शुद्धि ही वास्तविक शुद्धि है।