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[कबीर की साखी
 

 

सन्दर्भ―स्त्री के सम्पर्क से ईश्वर भक्त ही बच पाते हैं।

भावार्थ―जिस प्रकार नरक कुंड अपवित्र होता है उसी प्रकार स्त्री भी अपवित्र होती है अपनी इन्द्रियरूपी लगाम को विरले व्यक्ति ही रोक पाते हैं। संपूर्ण संसार स्त्री मोह मे पडकर मरकर विनष्ट हो गया केवल कुछ साधु व्यक्ति ही इसके प्रलोभन से बचकर भव सागर पार कर पाते हैं।

शब्दार्थ―थभै=थामना रोक पाना। वाग=लगाम।

विशेष―रूपक अलकार।

सुदरी थैं सूली भली, विरला बंचै कोइ।
लोह निहाला अगनि मैं, जलि बलि कोइला होय॥१६॥

सन्दर्भ―नारी दृढ चरित्र वाले की व्यक्ति को भी पथ भ्रष्ट कर देती है।

भावार्थ—सुन्दरी स्त्री से शूली फिर भी अच्छी होती है क्योकि स्त्री के घातक प्रभाव से विरला व्यक्ति ही बच पाता है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ लोहे को भी अग्नि जलाकर कोयला बना देती है उसी प्रकार स्त्री भी श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पुरुष को भी नष्ट भ्रष्ट कर देती है।

शब्दार्थ―निहाला=डालना।

अंधा नर चेतै नहीं, कटै न संसै सूल।
और गुनह हरि बकससी, काँमी डाल न मूल॥१७॥

सन्दर्भ―कामी व्यक्ति के अवगुणो को ईश्वर क्षमा नहीं करता है।

भावार्थ―कामान्ध व्यक्ति को कभी चेत नही आता वह सदैव असावधान ही रहता है जसके सशय का निवारण भी नही हो पाता है। अन्य गुनाहो को दोषो को तो ईश्वर क्षमा कर देता है किन्तु कामी व्यक्ति तो कही का भी नहीं रहता है न तो उसके हाथ मे यह लोक रहता है और न परलोक।

शब्दार्थ―अन्धा=कामान्ध। गुनह=गुनाह, दोष।

भगति बिगाड़ी कॉमियाॅ, इंद्री केरै स्वादि।
हीरा खोया हाथ थैं, जनम गॅवाया बादि॥१८ ॥

सन्दर्भ―मानव जन्म का उद्देश्य एक मात्र प्रभु भक्ति ही है।

भावार्थ―कामी पुरुषो ने इन्द्रियों के स्वाद के लिए भक्ति मार्ग को नष्ट कर दिया उन्होंने हीरा ऐसे अनमोल भक्ति मार्ग को अपने हाथ से खो दिया और सांसारिक विषयों में पढ़ कर अपने जन्म को व्यर्थ ही खो किया।

शब्दार्थ―कामियाँ=कामी पुरुष। वादि=व्यर्थ।

विशेष―रूपक अलकार।